Saturday, October 10, 2015

Parampara Comics-132-Gorilla



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परम्परा कॉमिक्स -१३२-गोर्रिला
 परम्परा कॉमिक्स उन कॉमिक्स प्रकाशन में से था जिन्होंने कॉमिक्स प्रकाशन का कार्य तब शुरु किया था जब कम्प्यूटर युग का आवागमन हो चूका था और कॉमिक्स युग अपने चरम पर था। पर इस प्रकाशन ये कॉमिक्स छापने का कार्य पुरे लगन और ईमानदारी से किया था उस समय के बाकी प्रकाशकों की तरह इनका ध्यान सिर्फ कॉमिक्स छापने पर ही नहीं था बल्कि कॉमिक्स की गुडवत्ता पर पूरा ध्यान भी दिया था। इनकी कॉमिक्स की कहानियों और चित्रो में नयापन था। उस समय के कई अच्छे लेखकों जैसे हनीफ अज़हर जी ने इस प्रकाशन के साथ काम किया था। अगर कॉमिक्स युग इस प्रकासन के आने के कुछ समय बाद ही न खत्म हो गया होता तो हम आज मनोज कॉमिक्स की तरह इस प्रकाशन की कॉमिक्स भी ढूढ़ते।
 इस प्रकासन की कुल मिला कर १५ ० से २०० के बीच आई होंगी। इस प्रकाशन ने अपनी कॉमिक्स का नंबर १०१ से शुरु किया था इस लिहाज़ से ये कॉमिक्स १३२ वी न होकर ३२ है। गोर्रिला सीरिज की दो कॉमिक्स छोड़कर बाकी सारी कॉमिक्स मेरे पास है जिसे मै अपलोड कर दूंगा। बची दो कॉमिक्स मेरे और मित्र जरूर अपलोड कर देंगे। ये गोर्रिला सीरीज की ओरिजिन सीरीज है जिसमे १ - गोर्रिला , २-गैंस्टर की तलाश।,३- मौत का चक्रव्यूह है। ये सारी कॉमिक्स मेरे पास है जिन्हे मै जल्द ही आप सब के लिए अपलोड कर दूंगा।
 जिंदगी में कुछ सही-सही नहीं घट रहा है, समझ में नहीं आ रहा है की मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। सब कुछ समझ के परे नज़र आ रहा है। इतना असहाय मैंने अपने आप को बहुत कम ही पाया है। कोई इतना अनैतिक कैसे हो सकता है और फिर जिनको लोगो पर को लोगो नैतिक बनाने की जिम्मेदारी है वो इस आनैतिका को बढ़ावा दे रहे है और जो इस आनैतिका उजाकर करा था आज वो सबसे ज्यादा खतरे में नज़र आ रहा है।
 कई लोगो ने मुझ से कहा है की मुझे कहानी लिखनी चाहिए। ये काम मेरे बस के बाहर की है फिर भी आज मै ये कोशिश करूँगा शायद मेरे मन की बात इसी तरह से मेरे अंदर से बाहर आ जाये जो मै सीधा नहीं कह सकता।
 ये कहानी है दो चौकीदारों की एक रमेश दूसरा सुरेश। दोनों एक ही कम्पनी में काम करते है दोनों का काम बहुत ही जिम्मेदारी की है। कम्पनी के मालिक अपने आप बहुत ईमादार बताते है। उनके पास सूचना आती है की चौकीदार अपना काम ठीक से नहीं कर रहे है और वो उन मज़दूरों से मिल गए है जो चोरी छुपे सामान निकाल के ले जाते है। उसने फैसला किया की सभी चौकीदार अपनी जगह बदल लेंगे,पर रमेश और सुरेश ने अपनी जगह बदले बिना अपनी जगह पर काम कर रहे थे तभी रमेश जब वहां की तलाशी ले रहा था तो उसे मज़दूर का सामान दिखा जिसमे चोरी का सामान था। उसने उस बारे में मज़दूर से बात की जो की तुम्हारे बैग में सुरेश का बैग क्यों है और उसने उसकी सूचना अपने मालिक को दी। मालिक भी भगवान का बनाया हुवा अनोखा नमूना था उसके लिए सुरेश की खुली चोरी मायने नहीं रख रही थी उसके लिए ये बात ज्यादा मायने रख रही थी की तुमने अपनी जगह क्यों नहीं बदली। अगर तुमने अपनी जगह बदली होती तो तलाशी सुरेश लेता तो ये बात कभी सामने नहीं आती। उसे इस बात से कोई लेना देना नहीं लग रहा है की रमेश ने चोरी को उजागर की वो तो बार- बार सिर्फ एक बात कह रहा है की आप ने अपनी जगह क्यों नहीं बदली। ऐसे मालिक के साथ रमेश का काम करना मुश्किल होता जा रहा था। बार -बार ये ख़बरें आती थी की उस गेट के लिए कोई नया चौकीदार ढूढ़ा जा रहा है। वो वेचारा तो ईमानदारी करके फंस गया था। उसने भी नयी जगह नौकरी तलाशना शुरू कर दिया। अब ये तो समय की गर्त में छुपा था की मालिक रमेश को पहले निकलता है या रमेश को दूसरी नौकरी पहले मिलती है या समय के गर्व में कुछ और ही छुपा है। आप सब भी इसके आगे की कहानी को पूरा करने की कोशिश कीजिये अपने तरीके से मै भी इसे पूरा करूँगा अपने समय पर (यानि अगले अपलोड पर ) आज वैसे भी ज्यादा हो गया है फिर जल्द ही मिलते है। . . ,

Wednesday, September 30, 2015

Prabhat Chitrakatha-278-Tiger Aur khunkhar Sherni


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प्रभात कॉमिक्स-२७८-टाइगर और खूंखार शेरनी
 प्रभात कॉमिक्स मैंने अपने समय में न के बराबर पढ़ी है। इसलिए इनके बारे में मेरी कोई पुरानी राय नहीं है। शायद जब मैंने कॉमिक्स पढ़ना शुरु किया था तब मुझे लखनऊ में ये कम ही दिखाई पढ़ती थी और तब न तो इतना पैसा होता था और न तो समय की और ज्यादा कॉमिक्स पढ़ी जाये तो अगर ये मिलती भी होंगी तो भी मेरा ध्यान शायद ही इन कॉमिक्स पर गया होगा। मनोज कॉमिक्स और राज कॉमिक्स के मुकाबले इनका डिस्ट्रीब्यूशन चैनल बहुत कमजोर रहा होगा।
और अगर आज के हिसाब से बात करूँ तो मुझे इन कॉमिक्स से कोई शिकायत नहीं है कहानिया भी अच्छी है और चित्रों को ले कर भी मै बहुत तो नहीं फिर भी सन्तुष्ट हूँ। उस समय मिलती तो शायद मै इनको भी राज और मनोज कॉमिक्स की तरह खूब पढता। अब इन कॉमिक्स का कलेक्शन मेरे पास अच्छा तो है पर उस तरह से नहीं है जिस तरह से मेरे पास मनोज और राज कॉमिक्स है।
 ये कॉमिक्स मैंने आज से चार दिन पहले अपलोड करने के लिए सोचा था और इसे नेट पर अपलोड भी कर दिया था पर कुछ लिखने के लालच में ये कॉमिक्स पोस्ट होने से बचती रही। होता ये है की अगर मै किसी बात तो लेकर बहुत परेशान रहता हूँ तो कुछ भी लिखने से बचता हूँ। कारण सीधा सा है की कुछ भी लिखूंगा तो उस बात की छाप तो होगी ही। और हर सच तो ऐसे सबके सामने पोस्ट तो नहीं किया जा सकता। दुखी तो आज भी बहुत हूँ ,पर पहले से थोड़ा कम। लिखूंगा तो आज भी बहुत कुछ पर सीधा कुछ नहीं होगा। इंसान के जीवन में उसकी परवरिश का बड़ा हाथ होता है। और इस मामले में शायद मै आज के युग के हिसाब से ठीक से कुछ सीख नहीं पाया। एयर फ़ोर्स कैंपस का माहौल बाहर  की दुनिया के माहौल से बिलकुल उल्टा है। वहां सब नियम कानून से होता है और बाहर  बस एक ही नियम है की कोई नियम नहीं है। मैंने बहार के माहौल से जितना तालमेल अपने को दूषित किये बना सकता था बनाया है। पर जब समुन्द्र पार करना है तो गीला तो होना ही पड़ेगा। आप कुछ भी करें अगर उस बात से कोई सीधा सरोकार न हो तो मै कुछ नहीं बोलूंगा। पर अगर आप के कारण  मेरी ईमानदारी संदेह के घेरे में आती है तो फिर मै चुप नहीं रह सकता। कुछ ऐसा ही इस समय मेरे साथ हो रहा है. इस समय तो कुछ ऐसा माहौल बना हुवा है उसे तो देखकर ऐसा लगता है की जैसे मैंने सच बोल कर कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया है। मै स्कूल में पढता हूँ और मेरे लिए स्कूल एक मंदिर है मै वहां पूजा करने जाता हूँ। हो सकता है स्कूल लोगो के लिए बिजनेस सेंटर हो पर मेरे लिए तो एक मंदिर ही है और हमेशा रहेगा।
अब तो सबसे बड़ा सवाल मेरे लिए ये बन गया है की क्या मुझे सच बोलने की सजा मिलेगी। अगर मिलती है तो भी मै अपने आप को बदलने वाला नहीं हूँ। दुबारा ऐसा कुछ दिखेगा तो भी मै यही करूँगा तो इस बार किया है कीमत कितनी बड़ी ही क्यों न चुकानी पड़े। वैसे जहाँ तक मै समझता हूँ , सच से बड़ी चीज़ कोई हो नहीं सकती और सबको दिख ही जाता है और दिख भी रहा है। और जो ७५ साल की उम्र के हों उन्हें सच पहचने का तज़ुर्बा मेरे सच बोलने से ज्यादा है। बाकि जिसके घर में आग लगी है बुझानी तो उसे ही पड़ेगी मै सिर्फ आप की मदद ही कर सकता हूँ अब ये आप के ऊपर की आप मदद करने वाले का साथ देते है या आग लगाने का। ये आप को ही देखना है। मैंने अपना काम पूरी सिद्दत और ईमानदारी से की है और आगे भी करता रहूँगा।
 ज्यादा लिखना मेरे बहकने का कारण बन सकता है इसलिए आज इतना ही।
 कॉमिक्स के कहानी कुछ इस तरह से है की एक खूबसूरत बार डांसर के पीछे एक रहीसजादा पड़ता है। फिर उसके बाद उसकी जो गत होती है उसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं होता है। वो पागल बना दिया जाता है। बात इस इतनी सी है या कुछ और ? ये कुछ दिख रहा है वो सच है या फिर राहिशजदा तो मोहरा था असली निशाना कोई और ? इन बातों का पता तो आप को कॉमिक्स पढ़ने के बाद ही लगेगा। फिर मिलते है जल्द ही …

Sunday, June 7, 2015

Manoj Comics-636-Katl Ki Raat


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मनोज कॉमिक्स-६३६ -क़त्ल की रात
 मनोज कॉमिक्स में ६०० से ७०० के बीच की कई कॉमिक्स मेरे संग्रह में उपलब्ध नहीं थी। उनमे से ये कॉमिक्स भी एक है। संयोग से ये कॉमिक्स अपलोड भी नहीं थी और होने के आसार भी कम नज़र आ रहे थे। ऊपर वाले की दया से ये कॉमिक्स मिली और आज मैं इसे अपलोड कर पा रहा हूँ। कॉमिक्स पढ़ना मेरा शौक है और जो भी कॉमिक्स मै पढता था या पढ़ने की इच्छा थी लगभग वो सभी मेरे संग्रह में उपलब्ध है। पर मुझे ये भी पता है की मेरे बाद उन कॉमिक्स को रद्दी में ही जाना है। कॉमिक्स, मेरे बचपन की अनमोल धरोहर है उसे इस तरह से ख़त्म होते देखना मेरे लिए बहुत कष्टकारी अनुभव था। जो, कभी कॉमिक्स प्रिंट करके और बेचकर बन  गए (कुछ तो आज भी बन रहे है। ) ये उनकी जिम्मेदार थी कि वो इसे बचाने का प्रयास करते। राज कॉमिक्स को अगर छोड़ दिया जाये तो बाकी सभी ने इसे और भी छति पहुँचायी। कोई भी प्रयास इसे बचाने का नहीं हुआ बस राज कॉमिक्स ने इसे बचाने का जी -तोड़ प्रयास किया और अभी भी कर रहे है। उम्मीद है वो जरूर सफल होंगे।

पर बाकी प्रकाशनों की कॉमिक्स का क्या होगा ?  तो उनको स्कैन और अपलोड करने का काम हम जैसे अपलोडर कर रहे है। अनुपम अग्रवाल जी ने इस प्रयास को शुरू किया था और आज शिव कुमार, गौरव, rko और भी बहुत लोग इस प्रयास में लगे है। उम्मीद करता हूँ की हम सब मिल कर छपी हुई ९० % हिंदी कॉमिक्स अपलोड करने सफल हो जायेंगे। अगर मोहित राघव जी अपलोड का काम जारी रख पाते तो अब तक हम मनोज कॉमिक्स तो सारी अपलोड कर चुके होते।

 पिछले अपलोड के साथ लिखी गयी मेरी बाते कुछ लोगो को अच्छी नहीं लगी। मुझे तो यही समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर परेशानी किस बात को लेकर थी। सीधी बात तो ये है की मै जन्म से हिन्दू हूँ और रहूँगा तो मै राम-राम ही करूँगा अल्लाह-अल्लाह,जीजस-जीजस तो करने से रहा। मैंने पोस्ट में वही तो किया था। धर्म- धर्मनिरपेक्ष होने का मतलब ये थोड़े ही हैं की मै अपने धर्म को मानना छोड़ दूँ। ये मुझ से तो हो नहीं सकता और जिनको धर्म- धर्मनिरपेक्ष होने का बहुत शौक हैं वो अल्लाह-अल्लाह या जीसस-जीसस करें मुझे कोई परेशानी नहीं है। धर्म- धर्मनिरपेक्ष देश में सभी को अपने धर्म को मानने,प्रचार-प्रसार करने का पूरा अधिकार है तो मुझे भी तो है। मै इसे समय-समय पर करता रहूँगा। एक साहब का मानना था की ये प्रचार का सरल माध्यम था अब उनको कौन समझाए कि जो भी ऑनलाइन कॉमिक्स डाउनलोड करके पढ़ते है उनमे से ९०% तो मुझे जानते है और वो मेरे अपलोड का इंतज़ार करते है फिर प्रचार किसके लिए। वैसे भी मेरा कमाई का जरिया मेरा अध्यापन कार्य है न की ये ब्लॉग।

 फिर जल्द ही आप सब से दुबारा मुलाकात करता हूँ ………………………

Friday, May 29, 2015

Manoj Comics-632-Maut Ke Aansu


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मनोज कॉमिक्स-६३२-मौत के आँसू
 ये कॉमिक्स मेरे संग्रह में नहीं थी और कहीं भी अपलोड भी नहीं थी। मतलब इस कॉमिक्स का मिलना बहुत जरुरी था। कॉमिक्स तो मिली पर मनोज कॉमिक्स के लिए इस कॉमिक्स से ज्यादा कीमत मैंने नहीं चुकाई थी। पर जो भी हो कॉमिक्स मिल गयी मेरे लिए ये ही बहुत है। पर जिस तरह से आज कल कॉमिक्स के दाम मांगे जा रहे है मैंने तो लगभग कॉमिक्स लेना बंद कर दिया है।
 कभी-कभी तो ऐसा लगता है जैसे मेरे लिए कुछ बदला ही ना हो,आज से १० -१५ साल पहले भी मैं अपने जेबखर्च से एक साथ २० कॉमिक्स नहीं खरीद सकता था और आज भी अपने वेतन से एक साथ २० कॉमिक्स नहीं खरीद सकता। "हे ईश्वर," कुछ तो बदले, चाहे वेतन, चाहे कॉमिक्स के दाम।
 आज मन बाग़ी हो रहा हैं। जो कुछ आज मैं लिखने जा रहा हूँ वो कईओं को नाराज़ कर सकती है पर अगर नहीं लिखा तो मैं अपने आप से नाराज हो सकता हूँ।
धर्म एक ऐसा विषय है इस पर आप कैसा भी लिख लो विवाद तो होना ही हैं। मै अपने सभी पाठकों से विनम्र निवेदन करता हूँ,कि जो कुछ भी यहाँ लिखा जाता है वो मेरी निज़ी राय है और आप की राय मेरी राय से सर्वथा भिन्न हो सकती है। मै हिन्दू धर्म को मानने वाला हूँ और मैं ये मानता हूँ कि इससे बेहतर धर्म नहीं सकता। हम किसी भी जाति या वर्ग के हों हमारे लिए कुछ भी अनिवार्य नहीं हैं। हम किसी की पूजा करें, ना करें, मन्दिर जाएँ ना जाएँ ,ब्रत रखें, ना रखे, किसी भी बात की अनिवार्यता नहीं हैं। हमारे धर्म में नास्तिक के लिए भी उतनी ही जगह हैं जितनी आस्तिक के लिए।
हमारे धर्मग्रन्थ भी इसी तरफ इशारा करतें हैं हिरण्यकश्यप को भगवान ने इसलिए नहीं मारा था की वो भगवान की पूजा नहीं करता था या वो अपनी पूजा करवाना चाहता था। बल्कि इसलिए मारा क्योंकि वो अपने निर्दोष पुत्र प्रलाद को बार-बार मारने का प्रयास कर रहा था। हमारे धर्म में विचारों की आज़ादी हैं। हमारे इतिहास में कही भी ये नहीं मिलता की अगर किसी ने धर्म की मान्यता से हट कर कुछ कहा हो तो उसे सजा दी गयी हो। जबकि बाकी धर्मो में ऐसे बहुत उदहारण मिलते हैं। (चाहे सुकरात का हाथ काटना,या जरा जरा बात में फतवा जारी करना ) हमारे पूरे सनातन धर्म के इतिहास में हमने किसी को भी सनातन धर्म अपनाने के लिए बाध्य नहीं किया हैं। क्योंकि हम जानते है की हम श्रेष्ठ है। इसके विपरीत चाहे मुस्लिम इतिहास उठाएं और चाहे ईसाई , इन्होने अत्याचार कर- कर के लोगो को अपने धर्म में शामिल किया है। मुग़ल बादशाह औरंगजेब का दिन हिन्दुओं को मुसलमान बनाने से ही शुरू होता था। हमारे किसी भी हिन्दू राजा ने किसी भी धार्मिक स्थल को नुक्सान नहीं पहुँचाया है।
पर अगर हम बात पहले मुग़ल बादशाह बाबर की करें तो उसने राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवायी और हम आज भी दूसरे धर्म का आदर करते हुए राम मंदिर बनने का इंतज़ार कर रहे है। सिर्फ इतना ही नहीं है अगर हम मस्जिद चले जाएँ तो हमसे कोई सवाल नहीं पूछेगा। गिरजाघर चलें जाएँ तो ये हमारे धर्म के लिए सामान्य बात होगी। हिन्दू धर्म तो इतना वयापक है की हम ईसा मसीहा,मोहमद साहब वा गौतम बुध को भी भगवान विष्णु का अवतार मानते है। हिन्दू धर्म में लोग अपने आप धर्म का आचरण करते है। कोई उन्हें बाध्य नहीं करता। बड़े मंगल पर इतने लोग सेवा में होते है की खाने वाले कम होते हैं खिलाने वाले ज्यादा। कोई बाध्यता नहीं होती है आप चाहे तो सेवा करें चाहे तो न करें। हिन्दू धर्म कर्म प्रधान है आप अपना कर्म करते रहे चाहे पूजा करें चाहे ना करें आप सबसे बड़े धार्मिक माने जायेंगे। मैं अपने आप को बहुत किस्मत वाला समझता हूँ की मैं हिन्दू हूँ। हम कट्टर नहीं हैं पर कमजोर भी नहीं है। हमारा दयालु स्वभाव कमजोरी की निशानी नहीं है। जो हमारे साथ रहते है वे सर्वथा सुरक्षित रहते है इसलिए उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि वो हमें भी सुरक्षित रखें।
 आज वैसे भी बहुत ज्यादा हो गया है फिर मिलते है ..........

Thursday, May 21, 2015

Madhumuskan Comics-22-Jasus Chakram aur Chirkut Rahsyon Ke Ghere M


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मधु-मुस्कान कॉमिक्स-२२-रहस्यों के घेरे में (जासूस चक्रम और चिरकुट ) इस तरह के चरित्रों की सुरुवात हमारी लोक कथाओं से हुवी है, एक मुर्ख जो करना कुछ और चाहता है होता कुछ और है और जो भी होता है वो मुर्ख को हीरो बना देता है। इसी तरह की कहानियां बांकेलाल (राज कॉमिक्स ) हवलदार बहादुर (मनोज कॉमिक्स) की भी होती थी। जासूस चक्रम के साथ भी ऐसा ही है सोचते कुछ और है करते कुछ और है और होता कुछ और है। कहानी के लिहाज़ से ये कॉमिक्स मुझे ज्यादा पसंद नहीं आई। हाँ एक बात इस कॉमिक्स में जरूर अलग है की जब अलग-अलग देशों के जासूस मिलते है तो वो दोस्तों की तरह मिलते है दुश्मनो की तरह नहीं।

फिर बहुत वक़्त गुजर गया आप सब से बात किये हुवे। क्या करूँ एक बात जब लय टूट जाती है तो फिर वैसा काम हो नहीं पाता। अब मै पूरी कोशिश करूँगा की इस बार जो लय बने तो फिर कभी ना टूटे। सच्च कहूँ तो कुछ न कुछ लिखते रहना मेरी भी मज़बूरी है क्योंकि जिंदगी में हमेशा कुछ न कुछ घटता रहता है और उस घटना को कही न कही कहना बहुत जरुरी हो जाता हूँ। वरना जिन्दगी जीना बहुत कठिन होता है। आज फिर जिंदगी की कुछ बाते दोहराने का मन कर रहा है। मेरा जिंदगी जीने का अपना तरीका है न मुझे किसी से जलन होती है। न ही दुःख और न ही बहुत ज्यादा ख़ुशी (मतलब ये नहीं की मै इंसान नहीं हूँ ,मतलब सिर्फ इतना ही है की मै अपनी भावनाओं पर पूरा नियंत्रण रख लेता हूँ। ) लेकिन फिर भी अगर कोई मुझे सीधा हमला करे किसी भी कारण तो फिर मै पूरा इंसान बन जाता हूँ। और जो मुझ में सबसे बड़ी कमी है वो ये ही है की मै किसी को माफ़ नहीं कर पाता। आप एक बार मेरी नज़रों से गिर गए तो आप कुछ भी कर लो मेरे लिए आप हमेशा वैसे ही रहेंगे। पर इसी दर के कारण सामने वाले को बहुत मौके देता हूँ और चीज़ो को ठीक होने का बहुत इंतज़ार करता हूँ। क्योंकि एक़ बार मैंने मान लिया तो फिर कुछ नहीं हो सकता।
हमारे यहाँ भी ऐसा ही है की कुछ लोग अपना काम तो ठीक से कर नहीं पा रहे है और मुझ से स्पर्धा करने में पड़ जाते है होता ये है की अपना काम और खराब कर लेते है और दोष मुझ पर लगा देते है। वो ये नहीं जानते की मै अपने काम के प्रति कितना ईमानदार हूँ। मै सोते ,जागते,उठते,बैठते सिर्फ अपने काम के बारे में ही सोचता हूँ और कभी मुझे ये नहीं लगता की इससे बेहतर नहीं हो सकता। हमेशा बेहतर और बेहतर करने की कोशिश में ही लगा रहता हूँ। सबसे जरुरी बात जैसा की मेरे साथ है की कभी सामने वाले को छोटा होने का अहसास नहीं होने देता (हाँ जो मेरे साथ ऐसी कोशिश करता है उसे जरूर आईना दिखा देता हूँ ) मै स्कूल में पढता हूँ वहां तो सभी मुझ से छोटे है जिन्हे मै पढता हूँ तो उनके साथ भी मै बराबर का आचरण करता हूँ जिससे वो अपनी परेशानी बिना किसी हिचक के बता देते है। यही कारण है की बच्चे मुझे पसंद करते है उन्हें ये पता रहता है की मनोज सर की क्लास में सारी परेशानी जरूर दूर हो जाएगी क्योंकि उन्हें अपनी बात रखने की पूरी आज़ादी रहती है और मेरा अहम कभी इस बीच नहीं आता।
 और अगर कुछ ऐसा है जो मुझे भी नहीं आ रहा है तो उसको मान लेने में मुझे भी कोई झिझक नहीं होती। इस लाइन के साथ "अभी तो मुझे कुछ पता नहीं चल रहा है किसी और समझदार आदमी से सलाह लेकर देखते है क्या होता है। ' मै समय ले लेता हूँ। सच को समझने में भले ही समय लग जाये पर झूठ तुरंत पकड़ में आता है चाहे झूठ पकड़ने वाले १० -१२ के बच्चे ही क्यों न हों। जिनका झूठ पकड़ा जाता है वो परेशान रहते है और जो सच बोलते है वो हमेशा खुश रहते है और उनसे लोग खुश रहते है। " ये तो बहुत आसान है अपने आप कर लेना या इसे पढ़ाने की जरुरत नहीं है। " उसी समय बच्चा समझ जाता है कि इसमें बहुत कुछ है जो आप को भी नहीं आता। अपने आप पर मेहनत कीजिये कोई आप की कितनी भी बुराई करले आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकता और आप कामचोरी करते रहे तो चाहे पूरी दुनियां आप की तारीफ करती रहे आप को कोई नहीं बचा सकता। अब जल्दी जल्दी मिलने की उम्मीद में। ..........

Thursday, February 12, 2015

Indrajaal Comics-Vol-26-No.-35-Khunkhaar Giroh


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इंद्रजाल कॉमिक्स-२६-३५-खूंखार गिरोह
 इंद्रजाल कॉमिक्स में "बहादुर" ही पहला भारतीय सुपर हीरो है। इसकी कहानी बहुत ही सीधी और साधारण सी है पर दिमाग को बहुत सुकून देती है। आज तो ऐसी कहानी के लिए दिल तरस जाता है। इस कहानी में एक खतरनाक गिरोह बड़े शानदार तरीके से डाके डालते है और उन्हें पकड़ने की जिम्मेदारी बहादुर के कन्धों पर आ जाती है।अब बहादुर इस गिरोह को कैसे पकड़ता है यही कहानी का मुख्य आकर्षण है। पढ़कर जरूर देखे।                                                                                    नैतिकता
 आज बात नैतिकता की करने की हो रही है। वैसे तो नैतिकता की बात तो सभी करते है पर नैतिकता दिखती किसी में भी नहीं है। (मुझ में भी नहीं) पर मुझे लगता है कुछ जगह नैतिकता ऑक्सीजन से भी ज्यादा जरुरी है। (वैसे तो नैतिकता सभी जगह जरुरी है ) वो जगह है स्कूल, और मै स्कूल में ही काम करता हूँ।
अभी कुछ दिन दिन पहले लखनऊ के एक स्कूल में एक अध्यापक पर अपनी ही छात्रा के साथ कुकर्म करने का आरोप लगा। (मै इस बात में नहीं पड़ना चाहता की क्या सही है क्या गलत) पर इस घटना में मुझे अन्दर तक हिला कर रख दिया, कोई ऐसा सोच भी कैसे सकता है, और यहाँ ये सब हो भी जाता है। नैतिकता का ऐसा पतन समझ से परे है।
अब तो मुझे लगने लगा है हर जगह ऐसे जानवर मौजूद है बस हमें उसे पहचाने की जरुरत है। पर उन्हें पहचाना बहुत कठिन है। कोई भी वो जानवर हो सकता है। इसमें सबसे बड़ी परेशानी ये है की इनके शिकार होने वाले मासूम और न समझ है और वो जिस उम्र के पड़ाव में होते है उन्हें बहलाना सबसे ज्यादा सरल होता है। ऐसे में एक अध्यापक के नाते मै सिर्फ अपने नैतिक होने जिम्मेदारी ले सकता हूँ और किसी की नहीं। पर ऐसे में किया क्या जाये। सच पूछो तो कुछ भी कर पाना बहुत मुश्किल है।
 पर अगर कुछ सावधानी रखी जाए तो इससे कुछ बचा जा सकता है। मुझे लगता है की इसमें सबसे बड़ी जिम्मेदारी बच्चियों की माँ पर होती है उन्हें अपने बच्चियों के साथ माँ की तरह नहीं सहेलियों की तरह होना चाहिए जिससे वो उन्हें अपनी छोटी से छोटी बात बताएं। और जिसे भी घर पढ़ाने घर बुलाएँ या जिनके घर भेजें उन पर विश्वास तो करें पर सतर्क हमेशा रहे। और अपने बच्चों से उनके बारे में बात करते रहे। स्कूल में भी कुछ सावधानी रखी जा सकती है। स्कूल प्रबंधन को चाहिए की कम से कम एक लड़कियों के मामले के महिला विशेषज्ञ को रखना चाहिए और उनसे अपने स्कूल ८ वीं से लेकर १२ वीं तक की लड़कियों से लगातार बात करने देना चाहिए जिससे इस तरह की कोई बात होने से पहले उसके पता चलने की सम्भावना बढ़ जाएगी। अगर हम इन छोटी बातों का ध्यान दें तो फिर नैतिकता के हनन को कुछ हद तक रोका जा सकता है।
 वैसे भी मैंने अपने इस जीवन में एक ही बात सीखी है कि
" इंसान तब तक ही ईमानदार रहता है जब तक उसे बेईमानी का मौका नहीं मिलता"।

Tuesday, February 3, 2015

Indrajaal Comics-26-29-Nakaam Shadyantra


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इंद्रजाल कॉमिक्स-२६-२९-नाकाम षड्यन्त्र
 जैसा की मै कई बार लिख चूका हूँ कि मुझे इंद्रजाल कॉमिक्स पसंद नहीं आती। मुझे कोई भी नायक की कहानी में भारतीयता का आभाव नज़र आता है। पर ये प्रकाशन हिंदी कॉमिक्स का पहला प्रकाशन था तो इसे भी जितना संभव हो स्कैन करके अपलोड करना जरुरी है। पर इस कॉमिक्स को स्कैन करने की मुख्य वजह इन पर दीमक लग जाना है। अब इन पर दवा लगा कर ठीक तो कर लिया है और साथ में अपलोड करके दोहरा बचाव करने की कोशिश की है।
 काफी दिनों बाद मैंने स्कैन और अपलोड करना शुरू किया है तो ऐसा लगता है जैसे लिखने की आदत खत्म हो गयी है। पर आज पूरी तरह से मन बना लिया है की कुछ तो लिखूंगा और जरा लम्बा लिखूंगा। और कुछ लिखने के लिए अपनी जिंदगी के कुछ पहलुंओ के बारे में लिखने से ज्यादा आसान कुछ हो ही नहीं सकता।
आज मै अपनी जिंदगी के उन रिश्तों के बारे में लिखूंगा जिसे मैंने कभी भी किसी को बताने की कोशिश नहीं की। कुछ रिश्ते अजीब ही होते है जो की अनजाने में आप की जिंदगी में आते है और जब तक आप उनके बारे में दिमाग से सोचने की स्थिति में पहुँचते है दिल दिमाग पर हावी हो चूका होता है और हम अक्ल से पैदल हो चुके होते है। आप लोगो को लग रहा होगा की मै अपने पहले प्यार के बारे में लिखने जा रहा हूँ। जी नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। प्यार तो मुझे कभी हुवा ही नहीं और मेरे बारे में यही शास्वत सत्य है। मै हमेशा से ही कुछ अजीब तरीके से रहा। मै अपने घर में सबसे बड़ा लड़का था और मेरे दो साल तक होते-होते मेरा छोटा भाई भी दुनिया में आ गया। मै शरीररिक रूप से बहुत कमजोर था और साफ़-साफ भी बोल लेता था। इसके उलट मेरा छोटा भाई मुझ से तगड़ा भी था और थोड़ा तुतलाता था जिससे सभी का प्यार उस पर ही बरसता था और मेरी तरफ किसी का ध्यान कम ही जाता था। जिसके कारण मै समय से बहुत पहले बड़ा हो गया। हर कोई मुझ से सिर्फ समझदारी की ही उम्मीद करता था,गलती करने का हक़ मेरे पास था ही नहीं। इस कारण मै थोड़ा ( या बहुत ज्यादा) अहंकारी और अन्तर्मुखी हो गया। जब तक पढ़ाई की मुझे किसी की जरुरत महसूस ही नहीं हुवी पर जब मै कमाने के लिए घर से बाहर निकला तो मै अपने जैसे लोगो तो तलाशने लगा। वैसे जितने भी लोग मिले अगर वो लड़के थे तो जिंदगी खूब चली पर ऐसी लड़कियां मिली तो भी रिश्तों की समस्या आ गयी। मेरा मन जो की हर उस की मदद करने को तैयार था जिसे कोई भी परेशानी हो , चाहे छोटी चाहे बड़ी फिर रिश्ते कोई बात ही नहीं थी किसी ने भाई बनाया किसी ने अपनी सुबिधा अनुसार कुछ और। हाँ किसी ने मुझे आज तक अपना प्यार नहीं बनाया। पर सच कहूँ तो अच्छा ही हुआ। और फिर दिन रात उनकी समस्या के बारे में सोचना और उन्हें कैसे समाप्त किया जाय बस इसी में जिंदगी चलने लगी। ये कुछ दिनों की बात नहीं थी ये तो दशो साल चला। क्या-क्या नहीं किया, सारे मंदिर घूमे, सारे ब्रत रखे। कितनी बार तो पूरी रात इस चिंता में बिता दिया की वो बेचारी कैसी होगी इतनी भारी समस्या का सामना कैसे कर रही होगी। लेकिन एक बात तो है की अगर आप का इरादा सही है तो भगवान आप का बुरा कभी नहीं होने देता। धीरे-धीरे करके सभी रिश्तों की सच्चाई सामने आने लगी हर कोई अपने मतलब के हिसाब से मुझे इस्तेमाल करता रहा। यहाँ ये बात स्पष्ट कर दूँ की सिर्फ लड़कियों ने ही मेरा इस्तेमाल नहीं किया लड़कों ने भी किया पर उन से निपटना आसान था जब मिल जाएँ सुना दो या दो लगा भी दो पर लड़कियों के साथ आप कुछ नहीं कर सकते। पर इन रिश्तों ने मुझे दो बहुत बड़ी चीज़े दीं - पहला भगवान पर पर अटूट विश्वास जगाया और दूसरा सभी पर अविस्वास करना सिखाया। मै आज भी अपने सारे रिश्ते वैसे ही निभाता हूँ जैसे पहले निभाता था सामने वाला ये कभी जान सकता की मै उस पर विस्वास नहीं करता पर मै बिलकुल नहीं करता। मुझे आब कोई बात शायद ही कभी हैरान करें। मेरा दिल अब इतना मज़बूत हो गया है की अब कोई भी रिश्ता टूट जाये मै २४ से ४८ घंटों में अपने आप सम्भाल लूंगा। पर इसका असर मै किसी और पर कभी नहीं पड़ने देता,मै हर एक पर तब तक विस्वास (करने का दिखावा) करता रहता हूँ जब तक वो दोखा नहीं दे देता और हर बार इस उम्मीद से देखता हूँ की शायद ये आदमी मुझे गलत साबित कर के मेरा विस्वास दुबारा जग दे पर आज तक तो कोई ऐसा नहीं मिला और आगे ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं है। कई बार तो मुझे विस्वास करते समय यहाँ तक पता होता है की ये आदमी कहाँ पर कैसे दोखा देगा और ८०% मेरा अंदाज़ा बिलकुल सही होता है। आज वैसे तो कुछ ज्यादा ही हो गया बस मै उन सभी से माफ़ी मांगता हूँ जिनको मेरी इस बात से ठेस पहुँची है और जिनका विस्वास किन्ही कारणो बस मेरे कारण टूटा है। फिर मिलते है जल्द ही। …………………

Tulsi Comics-276-Angara Aur Buldog

Tulsi Comics-268- Angara Aur Balara Ki Rajkumari

Tulsi Comics-257-Angara Ki Wapsi

Tulsi Comics-250-Angara Antriksh Mai

Tulsi Comics-233- Angara Gayab


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Sunday, January 25, 2015

MC-629-Karamati Sarover Aur Halahal Naag


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मनोज कॉमिक्स -६२९-करामाती सरोवर और हलाहल नाग
 ये कॉमिक्स मेरे दूसरे ब्लॉग पर अपलोडेड है पर किन्ही कारणों बस उस फाइल में १६ पन्नो तक की कॉमिक्स ही जा पायी थी और मेरे पास उसकी ओरिजिनल कॉपी भी नहीं थी, इसलिए दुबारा स्कैन करना पड़ा।
 अभी कुछ दिन पहले मैंने किसी ग्रुप में इस बात पर बहस होते देखा की लड़कियां कॉमिक्स क्यों नहीं पढ़ती। कौन कहता है की लड़कियां कॉमिक्स नहीं पढ़ती ,भाई पढ़ती है और बहुत पढ़ती है। इस कॉमिक्स को दुबारा स्कैन करवाने वाला कोई और नहीं एक महिला ही है। उन्होंने मेरे ब्लॉग से सभी कॉमिक्स को i -pot पर डाउनलोड करके पढ़ा है जैसे ही उन्हें ऑनलाइन कॉमिक्स डाउनलोड करके डाउनलोड करने के बारे में पता चला तो पहले मेरा फ़ोन नंबर (जो की ब्लॉग पर उपलब्ध है ) ले कर तब तक फ़ोन रही है जब तक मैंने उन्हें cbr फाइल रीडर i -पॉट के लिए नहीं बता दिया। उसके बाद उन्होंने इस कॉमिक्स को डाउनलोड कर लिए और फिर जब तक मैंने बाकी के १६ और पन्ने स्कैन करके अपलोड नहीं कर दिया उनका फ़ोन आता रहा। इतना कॉमिक्स से लगाव तो मुझे भी नहीं है। तो भाईओ ये बात बिलकुल दिमाग से निकल दीजिये की लड़कियां कॉमिक्स नहीं पढ़ती।
 जैसा की हम सभी जानते है की अपने घर में हम कैसे भी रह लेते है कुछ भी पहन लेते है और कैसे भी बात कर लेते है। बस ये ब्लॉग मेरे घर जैसा है इस पर मेरी जो मर्ज़ी होती लिखता हूँ। और यही वो जगह है जहाँ मै अपनी सारी भड़ास निकाल सकता हूँ। पर अब तो ऐसा लगने लगा है जैसे ये घर भी परया हो गया है। कुछ भी लिखने से पहले "डर" सताने लगता है। तो आप मै इसी डर के बारे में बात करूँगा। अब मै ये बताऊँ की मुझे किस से और किस-किस बात का डर सताता है। १ - घर के बारे में कुछ लिख दूँ तो भाई के जरिये घर में पता चल जाएगा तो उन्हें बुरा लगेगा। २-स्कूल के बारे में कुछ लिखा और किसी टीचर में पढ़ कर स्कूल में बता दिया तो उन्हें बुरा लग जायेगा। ३- हिन्दुओं की तरफ से लिख दिया तो मुसलमान नाराज़ हो जायेंगे और मुसलमान की तरफ से लिखा तो हिन्दू नाराज़ हो जायेंगे।
 वैसे सच कहूँ मुझे किसी के नाराज़ होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। जिसको मुझे अपनाना है मेरे विचारों के साथ ही अपनाना होगा वरना वो अपना दूसरा रास्ता देख सकता है। मैंने आज तक अपने आप को कुछ इस तरह से रखा है की मुझे किसी की आदत व जरुरत नहीं पड़ती।
 वैसे डर हमेशा बुरा ही होता है ऐसा बिलकुल भी नहीं है। थोड़ा डर हमें इंसान बने रहने में मदद करता है। अगर देर हो जाने का डर न हो तो हम कभी समय से नहीं पहुंचेगे। फेल होने का डर न हो तो कौन पढ़ाई करेगा। EMI का डर न हो तो कमाई कौन करेगा। चीन का डर ना हो अमेरिका को तो वो भारत से दोस्ती क्यों करेगा और सबसे बड़ी बात अगर केजरीवाल का डर न हो तो किरण बेदी को वोट कौन करेगा। तो थोड़ा बहुत डरना भी जरुरी है।
 बाकी की बाते फिर कभी , उम्मीद है जल्दी जल्दी मुलाकात होती रहेगी .........................

Parampra Comics-147-Jahrele Ladake


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परम्परा कॉमिक्स-१४७-जहरीले लड़ाके
 परम्परा कॉमिक्स उन कॉमिक्स प्रकाशनों में से है जो कॉमिक्स की दुनिया में जरा देरी से पहुँचे। इनमे फोर्ट,परम्परा,पिटारा और दुर्गा कॉमिक्स मुख्य है। पर अगर सच्चे मायने में देखा जाये तो सिर्फ परम्परा ही ऐसा प्रकाशन था जिसने पूरी तैयारी के साथ इस दुनिया में कदम रखा था और उन्होंने हर वो कोशिश की थी जिससे उनकी कॉमिक्स बाजार में बनी रहे। उस समय के बेहतरीन लेखको और चित्रकारों ने इस प्रकाशन के लिए काम किया। इस प्रकाशन के कुछ सुपर हीरो सफल भी हुवे जिनमे से प्रमुख 'देवगण','गोरिल्ला','हिन्दीलाल और अंग्रेज़ीलाल' और शक्तिमान (मुकेश खन्ना वाला नहीं) .
 पर कंप्यूटर और वीडियो गेम के दौर में जब 'मनोज कॉमिक्स' और तुलसी कॉमिक्स अपने आप को नहीं बचा पाये तो फिर ये नया प्रकाशन कैसे बच पता। परम्परा कॉमिक्स की कहानियों और चित्रो का स्तर किसी भी और कॉमिक्स प्रकाशन से काम नहीं था और इन्होने तो ब्लैक-एंड-वाइट कॉमिक्स तक प्रिंट की थी।
इस प्रकाशन की मेरे विचार से १०० के लगभग कॉमिक्स आई थी या हो सकता है उससे भी कम। इस प्रकाशन ने कॉमिक्स का नंबर १०१ से शुरू किया था इसलिए कभी-कभी इनके नंबर के बारे में धोखा हो ही जाता है।
 अब बात इस कॉमिक्स के कहानी के बारे में कर ली जाये, कहानी पूर्णता फौजियों और उनके खतरनाक और रहस्यमय मिसन के बारे में है। इससे ज्यादा इसकी कहानी के बारे में लिखना इसका मज़ा किरकिरा कर सकती है। इसलिए इसे पढ़ कर देखे .......

Tulsi Comics-126-Champion Angara

Tulsi Comics-129-Angara Ka Bhookamp

Tulsi Comics-112-Angara Aur Kala Parvat

Tulsi Comics-92-Angara Aur Khooni Bhediya

Tulsi Comics-69-Angara Aur Kala Danav

Tulsi Comics-53- Operation Angara

Sunday, January 11, 2015

Puja Chitrakatha-Bhonku Ram Chala Hero Banne


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पूजा चित्रकथा- भोंकू राम चला हीरो बनने
 ये चित्रकथा उस समय की है जब भारत में कॉमिक्स की शुरुवात हुवी थी और कॉमिक्स बिक्री भी बहुत ज्यादा नहीं होती थी। इसलिए कॉमिक्स को कम से कम पैसे में छापना भी जरुरी था। इसलिए शुरुआती कॉमिक्स मात्र दो रंगो में छपती थी। डायमंड कॉमिक्स ने भी कुछ कॉमिक्स दो रंगो में छापी थी।
 ये कॉमिक्स भी उसी दौर की है, पढ़ने में आँखों को अच्छा तो नहीं लगता पर कहानी ठीक ठाक है। छपाई भी भी बहुत अच्छी नहीं है, परन्तु ये बहुत ही दुर्लभ कॉमिक्स है और इसे स्कैन करना ज्यादा जरुरी था।
 अब मै यही उम्मीद करता हूँ की लगातार कॉमिक्स अपलोड करता रहूँगा।
 हाँ मेरे कुछ मित्रों की इच्छा थी की मै तुलसी कॉमिक्स में "अंगारा", "जम्बू" और "तौसी " की कॉमिक्स अपलोड करूँ। पर मेरे लिए कॉमिक्स स्कैन करके अपलोड करना तो बहुत मुश्किल है पर मेरे मित्रों के कारण इन चरित्रों की ज्यादातर कॉमिक्स डिजिटल फॉर्मेट में मेरे पास है तो फिलहाल मै उन्हें ही अपलोड कर रहा हूँ। यहाँ मैं ये स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि जिन भी अपलोड के साथ मेरे विचार व कॉमिक्स के बारे कुछ न लिखा हो तो उन कॉमिक्स को मैंने स्कैन और अपलोड नहीं किया होगा। वो किसी और की मेहनत है और उन सभी को उनके काम का धन्यवाद उन्ही को जाना चाहिए अब बात इस कॉमिक्स की कहानी के बारे में बात कर ली जाए। कहानी का नायक भोंकू राम अव्वल दर्जे का आलसी और निकम्मा इंसान था और साथ में शादी शुदा भी था। आस पड़ोस वालों से इतना उधर मांग रखा था कि कोई अब उसे उधार देने को तैयार नहीं था। भूखे मरने तक की नौबत थी और इनको हीरो बनने का शौक अलग हो गया। अब इसके बाद क्या है उसे आप कॉमिक्स पढ़ कर ही जाने तो ही अच्छा होगा। आज के लिए इतना है फिर जल्द ही मिलता हूँ एक नए कॉमिक्स के साथ। ………………।

Tulsi Comics-22- Angara Hi Angara

Tulsi Comics-16- Azadi Ki Jung

Tulsi Comics-11- Angara Ka Atank

Tulsi Comics-07- Angara Ki Jang

Tusli Comics-02- Angara

Wednesday, January 7, 2015

Govershion-Comics-26-Antrikh Captan Jim Stwalwate Aur Hara Sitara


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मेरे प्रिय मित्रों
 बहुत दिनों बाद आप सब से बात करने का मौका मिल रहा है। सर्वप्रथम तो आप सब को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
 अब उम्मीद करता की दूबारा इतना इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। सच्च कहूँ तो ये इंतज़ार मेरे लिए किसी बहुत बुरे सपने से कम नहीं था। ऐसा लग रहा है जैसे मै इतने दिन होश में ही नहीं था। यहाँ तक कि मैं उस बारे में कुछ सोचना ही नहीं चाहता।
 इस कॉमिक्स के बारे में ज्यादा बात नहीं कर पाउँगा क्योंकि ये बहुत पहले पढ़ी थी तो कहानी ठीक से याद नहीं है बस इतना कह सकता हूँ कि ये उस समय की कॉमिक्स है जब लोगो को इंग्लिश कॉमिक्स को हिंदी में अनुवाद करके छापने का बहुत शौक था इंद्रजाल कॉमिक्स में ९०% से ज्यादा इंग्लिश कॉमिक्स का हिंदी में अनुवाद भर ही है। हाँ ये कॉमिक्स "फ़्लैश गॉर्डन" की कहानी जैसी ही है।