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नूतन चित्रकथा-352-मामाजी और पगड़ी की करामात
मामा जी,नाना जी,काका जी और चाचा चौधरी ये सब एक ही नाव पर सवार चरित्र है। सब की कहानियां एक जैसी,सभी अति बुद्धिमान,और सभी के साथ किसी न किसी रूप में एक बहुत ताकतवर साथी का होना,सभी कुछ एक जैसा। और मैंने जब कॉमिक्स पढनी शुरू की थी तब चाचा चौधरी को छोड़ कर कोई कॉमिक्स पढने को नहीं मिली थी इसलिए चाचा चौधरी ही पढ़ा गया,और चाचा चौधारी की कॉमिक्स ने हमारा बहुत मनोरंजन किया। पर जब कॉमिक्स मिलनी कम हो गयी तब जा कर मैंने नाना जी, काका जी और मामा जी को भी पढ़ा। चित्रों को छोड़ दूँ तो कई मायनो में ये सब चाचा चौधरी से बेहतर थे,कहानियां आप गुदगुदाने में सझम है। आज इसी कड़ी में मै मामा जी की एक कॉमिक्स अपलोड कर रहा हूँ। उम्मीद है आप सब को पसंद आएगी।
आज मै आप सब से "दिखावा" के बारे बात करूँगा। जब भी ये शब्द मेरे सामने आता है तब मुझे अपने HDFC Life में काम करने वाले दिन याद आते है और आता है संजय श्रीवास्तव की कही गयी वो बात कि " काम करो या न करो पर काम करने का दिखावा तो करो।" ये बात उस समय तो मुझे ज्यादा समझ में नहीं आई थी पर आज मुझे पता चलता है की ये थी बहुत ही गहरी बात। हम सभी इसी तरह से अपनी जिन्दगी में कही न कही दिखावा तो करते ही है, कभी अपने फैयदे के लिए तो कभी दुसरे को दुःख न देने के लिए,और कभी कभी तो अपने अहम् को ऊँचा करने के लिए भी हम दिखावा करते है।
दिखावा तो सभी करते है किसी न किसी स्तर पर,और व्यक्तिगत रूप से मै इसे बहुत बुरा भी नहीं मानता। पर इसकी भी अपनी सीमा होनी चाहिए,आप जी खोल कर दिखावा कर सकते है,पर उसमे शालीनता होनी चाहिए,अब आप कहेंगे की जब दिखावा ही है तो उसमे शालीनता कैसे हो सकती है, नहीं ऐसा नहीं है शालीनता के साथ किया गया दिखावा ही समाज का निर्माण करता है। समाज आखिर दिखावा ही है और क्या है ? हम कैसे भी क्यों न हों हमें सामाजिक होने का दिखावा करना ही पड़ता है, आप के घर खाने को हो न हो पर घर पर मौत होने पर आत्मा की शुधि के नाम पर लोगो को खिलाने का दिखावा करना पड़ना है, इस दिखावे ने हमारा कितना नुकशान किया है और कितना कर रहा है उसके बारे में अगर आप थोडा शोचेंगे तो पाएंगे की हम सब जो कुछ भी करते है वो एक दिखावा ही तो होता है। पर अगर कोई दिखवा किसी को कष्ट न पहुचे तो ठीक है पर अगर आप का दिखवा किसी को नुकशान पहुचाने लगे तो फिर वो दिखावा आप के मानसिक दिवालियापन की निशानी होता है।
अभी मैंने जिस स्कूल में पढ़ना शुरु किया है वहां पर मुझे ऐसा ही दिखावा देखने को मिला जिसने मुझे बहुत कष्ट पहुचाया, स्कूल में बच्चो के वार्षिक इम्तहान चल रहे थे,जैसा की अक्सर होता है की बच्चे कुछ न कुछ अपने हाथो या फिर पेपर पर कुछ न कुछ लिख लेते है जिसे वो उसे इम्तहान में इस्तेमाल कर सके,मै इस बात को पूरी तरह से गलत मानता हूँ और हम अध्यापक का यही काम होता है की हम उन्हें ये सब करने से रोके।ऐसी की एक घटना में हमारी स्कूल की एक अध्यापिका की क्लास में भी ऐसा ही हुवा, उस दिन हमारे स्कूल के संस्थापक भी आये थे बस उनको दखाने के लिए मै बहुत इमानदारी से अपना काम करती हूँ उनने उन बच्चो को उनके सामने पकड़ लिया और उसके बात जो दिखावे का नाटक हुवा उसका क्या कहना, उन बच्चो को एग्जामिनेशन हाल से हटाया गया फिर उनके अभिवावकों से शिकायत की गयी,और इस पुरे दिखावे में उन बच्चो का पूरा 45 मिनट बर्बाद किया। सवाल ये उठता है की क्या ये दिखवा जरुरी था? मुझे नहीं लगता, ऐसा नहीं है की मै ये मानता हूँ की बच्चे सही पर सही तो वो टीचर और वो संस्थापक जी भी नहीं थे। जो टीचर अपनी क्लास कण्ट्रोल नहीं कर सकता,उसे हर दुसरे बात के लिए संस्थापक की जरुरत पड़े वो क्या पढाता होगा? उन्हें दिखावे के बजाये खुद ही उन बच्चो को देखना चाहिए था और उन्हें रोकना चाहिए था न की उन बच्चो का समय बर्बाद करना चाहिए था। मेरे हिसाब से ये होना चाहिए था- टीचर को शिकायत नहीं करनी चाहिए थी उन बच्चो को क्लास में खड़ा करके डाटने के बाद उनको शाफ करने को कहना चाहिए था और फिर उनको क्लास में काम करने देना चाहिए था। और अगर टीचर ने शिकायत कर दी थी तो संस्थापक जी को बच्चो को एग्जाम के बाद बुला का वो सब करना चाहिए था इससे बच्चो का 45 मिनट बच जाता और उनके मन की भी हो जाती। पर हाय रे दिखावा !!
कभी अपने को सबसे बड़ा दिखाने का दिखावा ,तो कभी किसी को नीचा दिखने के लिए दिखावा,
पर मुझे लगता है जिनमे काबिलियत नहीं होती है वो ही अपने को सबसे बड़ा दिखाने का दिखावा करते है और जो काबिल होते है उन्हें दिखावे की जरुरत ही नहीं पड़ती। इसलिए दिखावा तो करना ही नहीं चाहीये पर अगर करना ही पड़े तो फिर ऐसा दिखावा करना चाहिए जिससे चाहे अपने को नुकशान हो जाये किसी और को तकलीफ नहीं पहुचनी चाहिए।
आज फिर ज्यादा लिख गया, कोई नहीं होता है। आप सब इस बेहतर कॉमिक्स का आनद लें जल्द ही दुबारा मिलते है .............
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नूतन चित्रकथा-352-मामाजी और पगड़ी की करामात
मामा जी,नाना जी,काका जी और चाचा चौधरी ये सब एक ही नाव पर सवार चरित्र है। सब की कहानियां एक जैसी,सभी अति बुद्धिमान,और सभी के साथ किसी न किसी रूप में एक बहुत ताकतवर साथी का होना,सभी कुछ एक जैसा। और मैंने जब कॉमिक्स पढनी शुरू की थी तब चाचा चौधरी को छोड़ कर कोई कॉमिक्स पढने को नहीं मिली थी इसलिए चाचा चौधरी ही पढ़ा गया,और चाचा चौधारी की कॉमिक्स ने हमारा बहुत मनोरंजन किया। पर जब कॉमिक्स मिलनी कम हो गयी तब जा कर मैंने नाना जी, काका जी और मामा जी को भी पढ़ा। चित्रों को छोड़ दूँ तो कई मायनो में ये सब चाचा चौधरी से बेहतर थे,कहानियां आप गुदगुदाने में सझम है। आज इसी कड़ी में मै मामा जी की एक कॉमिक्स अपलोड कर रहा हूँ। उम्मीद है आप सब को पसंद आएगी।
आज मै आप सब से "दिखावा" के बारे बात करूँगा। जब भी ये शब्द मेरे सामने आता है तब मुझे अपने HDFC Life में काम करने वाले दिन याद आते है और आता है संजय श्रीवास्तव की कही गयी वो बात कि " काम करो या न करो पर काम करने का दिखावा तो करो।" ये बात उस समय तो मुझे ज्यादा समझ में नहीं आई थी पर आज मुझे पता चलता है की ये थी बहुत ही गहरी बात। हम सभी इसी तरह से अपनी जिन्दगी में कही न कही दिखावा तो करते ही है, कभी अपने फैयदे के लिए तो कभी दुसरे को दुःख न देने के लिए,और कभी कभी तो अपने अहम् को ऊँचा करने के लिए भी हम दिखावा करते है।
दिखावा तो सभी करते है किसी न किसी स्तर पर,और व्यक्तिगत रूप से मै इसे बहुत बुरा भी नहीं मानता। पर इसकी भी अपनी सीमा होनी चाहिए,आप जी खोल कर दिखावा कर सकते है,पर उसमे शालीनता होनी चाहिए,अब आप कहेंगे की जब दिखावा ही है तो उसमे शालीनता कैसे हो सकती है, नहीं ऐसा नहीं है शालीनता के साथ किया गया दिखावा ही समाज का निर्माण करता है। समाज आखिर दिखावा ही है और क्या है ? हम कैसे भी क्यों न हों हमें सामाजिक होने का दिखावा करना ही पड़ता है, आप के घर खाने को हो न हो पर घर पर मौत होने पर आत्मा की शुधि के नाम पर लोगो को खिलाने का दिखावा करना पड़ना है, इस दिखावे ने हमारा कितना नुकशान किया है और कितना कर रहा है उसके बारे में अगर आप थोडा शोचेंगे तो पाएंगे की हम सब जो कुछ भी करते है वो एक दिखावा ही तो होता है। पर अगर कोई दिखवा किसी को कष्ट न पहुचे तो ठीक है पर अगर आप का दिखवा किसी को नुकशान पहुचाने लगे तो फिर वो दिखावा आप के मानसिक दिवालियापन की निशानी होता है।
अभी मैंने जिस स्कूल में पढ़ना शुरु किया है वहां पर मुझे ऐसा ही दिखावा देखने को मिला जिसने मुझे बहुत कष्ट पहुचाया, स्कूल में बच्चो के वार्षिक इम्तहान चल रहे थे,जैसा की अक्सर होता है की बच्चे कुछ न कुछ अपने हाथो या फिर पेपर पर कुछ न कुछ लिख लेते है जिसे वो उसे इम्तहान में इस्तेमाल कर सके,मै इस बात को पूरी तरह से गलत मानता हूँ और हम अध्यापक का यही काम होता है की हम उन्हें ये सब करने से रोके।ऐसी की एक घटना में हमारी स्कूल की एक अध्यापिका की क्लास में भी ऐसा ही हुवा, उस दिन हमारे स्कूल के संस्थापक भी आये थे बस उनको दखाने के लिए मै बहुत इमानदारी से अपना काम करती हूँ उनने उन बच्चो को उनके सामने पकड़ लिया और उसके बात जो दिखावे का नाटक हुवा उसका क्या कहना, उन बच्चो को एग्जामिनेशन हाल से हटाया गया फिर उनके अभिवावकों से शिकायत की गयी,और इस पुरे दिखावे में उन बच्चो का पूरा 45 मिनट बर्बाद किया। सवाल ये उठता है की क्या ये दिखवा जरुरी था? मुझे नहीं लगता, ऐसा नहीं है की मै ये मानता हूँ की बच्चे सही पर सही तो वो टीचर और वो संस्थापक जी भी नहीं थे। जो टीचर अपनी क्लास कण्ट्रोल नहीं कर सकता,उसे हर दुसरे बात के लिए संस्थापक की जरुरत पड़े वो क्या पढाता होगा? उन्हें दिखावे के बजाये खुद ही उन बच्चो को देखना चाहिए था और उन्हें रोकना चाहिए था न की उन बच्चो का समय बर्बाद करना चाहिए था। मेरे हिसाब से ये होना चाहिए था- टीचर को शिकायत नहीं करनी चाहिए थी उन बच्चो को क्लास में खड़ा करके डाटने के बाद उनको शाफ करने को कहना चाहिए था और फिर उनको क्लास में काम करने देना चाहिए था। और अगर टीचर ने शिकायत कर दी थी तो संस्थापक जी को बच्चो को एग्जाम के बाद बुला का वो सब करना चाहिए था इससे बच्चो का 45 मिनट बच जाता और उनके मन की भी हो जाती। पर हाय रे दिखावा !!
कभी अपने को सबसे बड़ा दिखाने का दिखावा ,तो कभी किसी को नीचा दिखने के लिए दिखावा,
पर मुझे लगता है जिनमे काबिलियत नहीं होती है वो ही अपने को सबसे बड़ा दिखाने का दिखावा करते है और जो काबिल होते है उन्हें दिखावे की जरुरत ही नहीं पड़ती। इसलिए दिखावा तो करना ही नहीं चाहीये पर अगर करना ही पड़े तो फिर ऐसा दिखावा करना चाहिए जिससे चाहे अपने को नुकशान हो जाये किसी और को तकलीफ नहीं पहुचनी चाहिए।
आज फिर ज्यादा लिख गया, कोई नहीं होता है। आप सब इस बेहतर कॉमिक्स का आनद लें जल्द ही दुबारा मिलते है .............
Thanks a lot Manoj Bro for this nootan Chitrakatha
ReplyDeleteWelcome Brother
Deletemanoj bhai sharam k maare comments naahi dalta itne dino se hoon mil naahi pa raha aap se but kya karoon meri health sach me saahi naahi reh pa raahi great salute to comic collectors like u
ReplyDeleteBrother Sharm karne jaisi koi baat nahi hai
Deleteaap pahle puri tarah theek ho jaye, to mulakaat bhi ho jayegi
par aap ka puri tarah theek hona jaruri hai,
par yadi possible ho to comment karte rahe achcha lagta hai
Thanks Manoj Bhai
ReplyDeleteWelcome Brother
Deletebrother ek problem solve karo. Jab mein koi bhi comics download karta hu to mediafire link mein download ka optiön nahi hota or hota bhi hai to not supported file dikhata hai.
ReplyDeleteBrother aap apna browser fir se delete karke dubra daal lijiye problem solve ho jani chahiye
Deletemanoj bhai agli comic kab aa raahee hai
ReplyDeleteBrother aaj kal me hi upload karunga
DeleteWating.......................:)
ReplyDeletemanoj bhai aapka number naahi lag raha frd
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