Monday, November 4, 2013

Anand Chitraktha-27-Jamakhoron Ka Giroh


Download 10 MB
Download 36 MB
आनंद चित्रकथा-२७-जमाखोरों का गिरोह (बंटी,पिंटू सीरीज़)
 सर्वप्रथम आप को दीवाली कि ढेर सारी शुभकामनाए,और मुझे पूरा यकीन है कि आप सब कि दीपावली बहुत ही आनंद पूर्वक बीती होगी। आज और कल दो दिन कि छुट्टी और है आज तो लगभग निकल ही चूका है और कल भी बहुत कुछ करने का मेरा मन नहीं है। इसलिए आज कम से कम एक कॉमिक्स अपलोड कर दूँ , यही सोच कर ये कॉमिक्स अपलोड कर रहा हूँ। कल बहुत दिनों बाद मैंने अपने परिवार के साथ कोई फ़िल्म देखी। कृष ३ और सच मानिये हम में से किसी कोई भी वो फ़िल्म ख़राब नहीं लगी। जब मै फ़िल्म देखने जा रहा था तो मेरे दिमाग में दो तरह कि शंकाएँ थी पहली कि वो हिंदी फिल्मो के मसलों जैसे भावनाए व गाने कैसे फ़िल्म में समाहित करेंगे और जो भी एक्शन है उन्हें हॉलीबुड के सामान कैसे बनाएंगे। पर इस फ़िल्म में एक्शन हॉलीबुड से बेहतर ही है गाने कही से भी अलग से नहीं लगते और भावनाओ के इतने बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया गया है कि मज़ा आ जाता है। एक जरुर देखने लायक फ़िल्म। हर कलाकार ने अपना सर्वश्रेठ दिया है। इस फ़िल्म को देखकर एक राज कॉमिक्स आयी थी "इच्झधारी" नागराज कि कॉमिक्स थी(दोनों कि कहानियों में कोई समानता नहीं है) हाँ एक डर की समानता जरुर है और वो डर था कि हीरो विलेन से कैसे जीतेगा यहाँ भी वो डर आप को दो कदम आगे ले जाता है।
अब बात इस कॉमिक्स कि कर ली जाये तो मै बस इतना कहूंगा कि मैंने स्कैन करके अपलोड कर दीया है पर इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके कारण इसे पढ़ना चाहिए। चित्रों का कुछ पता ही नहीं लगता कि उनका कहानी से क्या सम्बन्ध है और कहानी तो क्या कहना।
अगर आप को  कहानी अच्छी लग जाये तो फिर आप तो महान ही होंगे कि हर तरह कि चीज़ बर्दाश्त कर सकते है। अब इतनी बुरी कॉमिक्स मैंने स्कैन क्यों कि और फिर आप क्यों पढ़े। तो सीधा और दो  टूक जबाब है कि ये कॉमिक्स है और हम जितनी हिंदी कॉमिक्स सम्भव हो उसे बचाना चाहते है इसलिए ये कॉमिक्स मेरे पास है भी और मैंने इसे स्कैन और अपलोड करने जैसी मेहनत भी की है। और जब मैंने इसे स्कैन और अपलोड कर ही दिया है तो आप का भी ये कर्तव्य बनता है कि इसे डाउनलोड करके जरुर पढ़े आखिर हर अच्छी चीज़ आप की और बुरी चीज़ सिर्फ मेरे हिस्से तो ये सही बात नहीं है। और अगर इसकी डाउनलोडइंग कम होती है तो मेरी सच्च लिखने कि हिम्मत भी कमजोर होगी और फिर शायद अपनी सही पसंद और नापसंद न लिख सकू।