Sunday, August 23, 2020

Prabhat Comics-203-Jaduyi Topi

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प्रभात कॉमिक्स-२०३-जादुई टोपी ये कॉमिक्स स्कैन तो बहुत पहले हो गयी थी पर एडिट होने में बहुत टाइम लग गया इसलिए इसे अभी पोस्ट कर रहा हूँ। कहानी तो अच्छी है। पढ़ने में मज़ा आएगा। जिनको राजा-रानी और जादू की कहानियॉ पढ़ने में मज़ा आता है।
 आज मुझे अपने ग्रेजुएशन के दिनों की एक मज़ेदार बात याद आ रही है जिसे मै यहाँ शेयर कर रहा हूँ। बात ग्रेजुएशन सेकंड ईयर की है। पिता जी एयर फाॅर्स में थे तो एयर फोर्स  का भूत सवार था इसलिए जब N. C. C. लिया तो वो भी एयर फोर्स  की। NCC में भी तीनो विंग यानि एयर फोर्स , आर्मी, और नेवी होती है। लेकिन हमारी ट्रेनिंग आर्मी वाले ही ज्यादातर मौकों पर करवाते थे। क्योंकि हमारी संख्या कम थी इसलिए हमें आर्मी कैंप (NCC ) के साथ ही भेज देते थे। हमारे लिए  कम से कम २ कैंप करना कंपल्सरी था। ऐसा ही एक कैंप लगा जिसमे हमें जाना था। हम एयर फाॅर्स के १२ केडिट थे। ये कैंप लखनऊ के गोसाईगंज के  पास गजरिया फॉर्म पर लगा। जहाँ घोड़ों और गढ़वों के खूब दर्शन हो जाते थे। क्योंकि हम सब एयर फ़ोर्स कैडिट अच्छी अंरेजी बोल लेते थे इसलिए हम सब हमेशा ट्रेनर के टारगेट पर होते थे। इस बार का कैंप बड़ा था और उसमे लड़किया भी आयी थी। अब ये संयोग समझे की हम सब को लड़कियों के पास वाले रूम्स के बहार रहने को दिया गया था ऊपर से ये भी कह दिया गया था की हम सब को उन सब का ख्याल रखना है। हालत बहुत बुरे हो जाते थे हर किसी को २ घंटे ड्यूटी देनी पड़ती थी। हम सब ने दो-दो का ग्रुप बना रखा था। हम सब बड़ी मुश्किल से २ से ३ घंटे ही सो पते थे। लेकिन एक बात की सब तारीफ करते थे की हम सब अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से थी करते थे। जब भी नाईट में चेकिंग हुयी हमारे ग्रुप का कोई न कोई बंदा जगता ही मिलता था। १५ दिन का कैंप था ७ दिन तो किसी तरह निकल गए। आठवे दिन सुबह ८ बजे के आस-पास एक लड़का आ कर मेरी तरह इशारा करते हुए कहता है "ये था सर इसे मैंने देखा था " मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था की वो किस बारे में बात कर रहा था। फिर उसके साथ आये आर्मी के ट्रेनर में से एक मुझसे पूछते है की मै उस लड़की (नाम याद नहीं आ रहा है ) से रात को मिले थे। हम सब हक्के-बक्के थे और मै बहुत डरा हुवा। मैंने कहा सर मैं तो उस लड़की तो क्या किसी लड़की से नहीं मिला। फिर उन सब ने मुझसे तो कुछ नहीं कहा पर मेरे सभी साथियों से एक-एक करके जानकारी ली। फिर हमें कैंप कमांडर के पास ले जाया गया (क्योंकि मै बहुत डरा हुवा था इसलिए जहाँ भी मुझे ले जाया जाता था मेरे सभी साथी भी जाते थे ) जब हम उनसे मिले तो उन्होंने बताया की हमें तुम सब पर पूरा भरोषा है तुम में से कोई भी नहीं हो सकता पर अभी तुम लोग शांत रहो एक दो दिन में सच का पता सब को चल जायेगा। तब कहीं जा कर मेरी जान में जान आयी। फिर मैंने अपने दोस्तों से कहा की कम से कम उस लड़की को तो देख लेना चाहीये जिसके कारण मेरे ऊपर ये सब हो रहा है। (लेकिन आज तक मै ये नहीं जान पाया की वो लड़की कौन थी और कैसी दिखती थी। ) फिर अगले ही दिन सच का पता सब को चल गया जिस लड़के ने मुझे पहचाना था वो राइफल उठाये सजा झेल रहा था। जो कहानी बाद में पता चली वो ये था की उस लड़की का उस लड़के के साथ अफैर था और हम सब की ड्यूटी के कारण वो मिल नहीं पा रहे थे इसलिए उसने मेरा नाम लिया जिससे हम नाराज़ होकर ड्यूटी न करे और उनका मिलना आसान हो जाये। लेकिन जब आर्मी वालों को हम पर भरोषा था तो वही झूट बोलता हो सकता था। और सख्ती से पूछने पर शायद लड़की टूट गयी थी। क्योंकि हम इस बारे में बिलकुल बात नहीं करना चाहते थे और दूसरे हम आर्मी वाले लड़कों पर ज्यादा भरोषा भी नहीं कर सकते थे। इसलिए भी हम सब अपने काम में लग गए।

Guneet Comics-Kath Ke Ullu

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गुनीत चित्रकथा-काठ के उल्लू
 ये कॉमिक्स मुझे एक्सचेंज में "शालू राजा" भाई से मिली थी पर इस कॉमिक्स की कटाई कुछ इस तरह से थी की कई जगह कहानी भी कट रही थी। जब उनसे कहाँ तो उन्होंने इसे बदल कर दूसरी भेज दी। क्योंकि कॉमिक्स मेरे पास आ चुकी थी तो मैंने इसे स्कैन कर लिया। लेकिंग सही मायने में देखा जाये तो ये कॉमिक्स शालू राजा जी की है तो आप उन्हें भी धन्यवाद जरूर कहें। इस कॉमिक्स को मै कई कारणों से पढ़ नहीं पाया हूँ इसलिए कहानी के बारे में कोई राय देना संभव नहीं होगा जिसके लिए मुझे खेद है। कॉमिक्स स्कैनिंग में जो बाधा माताजी की मौत के कारण पड़ी थी उससे अभी तक उबर नहीं नहीं पाया हूँ। लेकिन अब मैं कॉमिक्स तेज़ी से स्कैन करूँगा। जिससे जल्द से जल्द आपको कॉमिक्स पढ़ने को मिल सके।

Sunday, August 2, 2020

Surendra Mohan Pathak- Smundra Me Katl


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सुरेंद्र मोहन पाठक- समुन्द्र में खून (सुनील सीरीज )
 मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की एक पूरा नावेल स्कैन करूँगा। पर इसे स्कैन करना मज़बूरी बन गया। हुआ ये की मै कॉमिक्स के चक्कर में होल सेल की दुकान पर गया था जहाँ राज कॉमिक्स मिलने की उम्मीद थी पर वहां जा कर निराशा हाथ लगी उन्होंने राज कॉमिक्स मंगवाना बंद कर दिया था। उनके पास नावेल जरूर पड़े थे। मेरे पास वेद प्रकाश शर्मा के दो नावेल थे " विकाश मैकबार के देश में " और "मैकबार का अंत" इसका पहला पार्ट "विकाश और मैकबार" नहीं थी जिसके कारण मै ये सीरीज नहीं पढ़ पा रहा था तो मुझे वहां ये नावेल दिख गयी। वहां से मै थोक में किताबे लता था तो डिस्काउंट के लिए और नावेल सर्च करना शुरू किया था तो चार-पांच नोवेल्स और मिले उनमे से सुरेंद्र मोहन पाठक का "आज क़त्ल हो कर रहेगा" और "समुन्द्र में क़त्ल" थी। मै इस नावेल को "क़त्ल की रात" से कंफ्यूज हो गया और पढ़ा नहीं। फिर जब मैकबार सीरीज पढ़ी तो मुझे बिलकुल पसंद नहीं आयी मुझे उस पर खर्च किये गए पैसे भारी लगने लगे तो मैंने उन्हें बेचने का फैसला किया तो सुरेंद्र मोहन पाठक की ये नावेल जो मेरे हिसाब से मेरे पास थी वो भी साथ में लगा दी। फिर मेरे एक पुराने मित्र जिन्होंने मेरे से पहले डिजिटल कॉमिक्स खरीदी थी उन्होंने बुक कर ली। और तुरंत पैसे ट्रांसफर कर दिए तो मन हुआ की पढ़कर देखूं तो जब पढ़ना शुरू किया तो पता चला की ये तो दूसरी नावेल है। फिर मज़बूर हो कर स्कैन करने का मन बनाया और स्कैन कर डाला। नावेल भी पूरा पढ़ डाला। नावेल में तीन कहानी है दो सुनील सीरीज की और एक प्रमोद सीरीज की। मुझे तो अच्छी लगी बाकि आप पढ़ का देखें।