Tuesday, February 25, 2014

DC-728-Lambu Motu Aur Green Signal


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डायमंड कॉमिक्स-७२८-लम्बू-मोटू और ग्रीन सिग्नल
डायमंड-कॉमिक्स भारत कि सबसे ज्यादा बिकने वाली कॉमिक्स में से एक थी और इसकी सबसे बड़ी खूबी दो थी एक तो "प्राण" के सारे चरित्र जैसे "चाचा चौधरी" , बिल्लू और पिंकी यहाँ से प्रकशित होते थे जिसके कारण मेरे जैसे कितने लोगो ने हिंदी पढ़ना सिखा था,और दूसरी खूबी इसकी कहानियों का प्रशारण हर रविवार रेडियो पर होता था जिससे इन कॉमिक्स के प्रति उत्सुकता बहुत बढ़ जाती थी। कुछ दिनों तक तो राज कॉमिक्स ने भी कॉमिक्स कि कहानियों का प्रशारण रेडियो पर किया था "नागराज और लाल मौत" मैंने रेडिओ पर सुन कर ही लिया था।
एस. सी.बेदी जी ने राजन-इक़बाल सीरीज़ डायमंड कॉमिक्स के लिए ही लिखा और बाद में उसके बाल पॉकेट बुक्स लिखने लगे। वो समय तो जैसे जोड़ियों का समय था राम-रहीम,राजन-इक़बाल,अमर-अकबर,राम-बलराम जैसे ढेर सारे बाल सीक्रेट एजेंट पर कहानियां आती थी और दिल कि बात कहूं तो मैंने कई बार ये पता करने कि कोशिश भी कि थी कि बाल सीक्रेट एजेंट कैसे बनते है पर कुछ पता ही नहीं चला।

कहानी के लिहाज़ से ये कॉमिक्स उतनी अच्छी तो नहीं है जैसा कि हम उम्मीद करते है बस ये कहानी हमें उस समय कि याद दिला देगी,कहानी कि सुरुवात होती है स्कूल के बच्चो से होती है जो कि एक बस में पिकनिक जा रहे थे जिसमे लम्बू-मोटू भी थे और उसी बस को आंतकवादी अपना बंधक बना लेते है उसके बाद लम्बू-मोटू किस तरह से उस बस को छुड़ाते है ये ही इस कहानी का मुख्य आधार है।

 हाँ आज यहाँ पर वो कुछ बाते मै दुबारा दोहरा रहा हूँ जिसे मै पहले भी कई बात कह चूका हूँ, इस ब्लॉग पर जो भी कॉमिक्स अपलोड होती है अगर उसे मैंने स्कैन और अपलोड किया होगा तो उस कॉमिक्स के साथ ९९ % मेरा उस कॉमिक्स के प्रति विचार जरुर होगा और उसमे मेरे ब्लॉग का लोगो तो १००% होगा अगर ऐसा नहीं है तो वो कॉमिक्स मेरी स्कैन और अपलोड की हुवी नहीं होगी वो सिर्फ यहाँ पर इसलिए दी गयी होगी कि ब्लॉग चलयमान रहे या फिर वो कॉमिक्स किसी सीरीज का हिस्सा होगी या फिर उस कॉमिक्स का लिंक नहीं नहीं मिल रहा होगा। अब बात आती है कि असली अपलोडर का नाम देने कि है तो वो मेरे लिए सम्भव नहीं रहता क्योंकि मै कभी कोई कॉमिक्स डाउनलोड नहीं करता क्योंकि मेरा नेट बहुत धीरे चलता है इसलिए मै अपने मित्रों से डीवीडी मंगवा कर कॉमिक्स पा लेता हूँ ऐसे में मुझे ये कभी पता नहीं रहता कि कौन से कॉमिक्स किसने भेजी है और उसे कहाँ से डाउनलोड किया गया है।
आज के लिए इतना बहुत है फिर जल्दी ही नयी कॉमिक्स के साथ दुबारा मिलते है। .......

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डायमंड कॉमिक्स-७२८-लम्बू-मोटू और ग्रीन सिग्नल
डायमंड-कॉमिक्स भारत कि सबसे ज्यादा बिकने वाली कॉमिक्स में से एक थी और इसकी सबसे बड़ी खूबी दो थी एक तो "प्राण" के सारे चरित्र जैसे "चाचा चौधरी" , बिल्लू और पिंकी यहाँ से प्रकशित होते थे जिसके कारण मेरे जैसे कितने लोगो ने हिंदी पढ़ना सिखा था,और दूसरी खूबी इसकी कहानियों का प्रशारण हर रविवार रेडियो पर होता था जिससे इन कॉमिक्स के प्रति उत्सुकता बहुत बढ़ जाती थी। कुछ दिनों तक तो राज कॉमिक्स ने भी कॉमिक्स कि कहानियों का प्रशारण रेडियो पर किया था "नागराज और लाल मौत" मैंने रेडिओ पर सुन कर ही लिया था।
एस. सी.बेदी जी ने राजन-इक़बाल सीरीज़ डायमंड कॉमिक्स के लिए ही लिखा और बाद में उसके बाल पॉकेट बुक्स लिखने लगे। वो समय तो जैसे जोड़ियों का समय था राम-रहीम,राजन-इक़बाल,अमर-अकबर,राम-बलराम जैसे ढेर सारे बाल सीक्रेट एजेंट पर कहानियां आती थी और दिल कि बात कहूं तो मैंने कई बार ये पता करने कि कोशिश भी कि थी कि बाल सीक्रेट एजेंट कैसे बनते है पर कुछ पता ही नहीं चला।

कहानी के लिहाज़ से ये कॉमिक्स उतनी अच्छी तो नहीं है जैसा कि हम उम्मीद करते है बस ये कहानी हमें उस समय कि याद दिला देगी,कहानी कि सुरुवात होती है स्कूल के बच्चो से होती है जो कि एक बस में पिकनिक जा रहे थे जिसमे लम्बू-मोटू भी थे और उसी बस को आंतकवादी अपना बंधक बना लेते है उसके बाद लम्बू-मोटू किस तरह से उस बस को छुड़ाते है ये ही इस कहानी का मुख्य आधार है।

 हाँ आज यहाँ पर वो कुछ बाते मै दुबारा दोहरा रहा हूँ जिसे मै पहले भी कई बात कह चूका हूँ, इस ब्लॉग पर जो भी कॉमिक्स अपलोड होती है अगर उसे मैंने स्कैन और अपलोड किया होगा तो उस कॉमिक्स के साथ ९९ % मेरा उस कॉमिक्स के प्रति विचार जरुर होगा और उसमे मेरे ब्लॉग का लोगो तो १००% होगा अगर ऐसा नहीं है तो वो कॉमिक्स मेरी स्कैन और अपलोड की हुवी नहीं होगी वो सिर्फ यहाँ पर इसलिए दी गयी होगी कि ब्लॉग चलयमान रहे या फिर वो कॉमिक्स किसी सीरीज का हिस्सा होगी या फिर उस कॉमिक्स का लिंक नहीं नहीं मिल रहा होगा। अब बात आती है कि असली अपलोडर का नाम देने कि है तो वो मेरे लिए सम्भव नहीं रहता क्योंकि मै कभी कोई कॉमिक्स डाउनलोड नहीं करता क्योंकि मेरा नेट बहुत धीरे चलता है इसलिए मै अपने मित्रों से डीवीडी मंगवा कर कॉमिक्स पा लेता हूँ ऐसे में मुझे ये कभी पता नहीं रहता कि कौन से कॉमिक्स किसने भेजी है और उसे कहाँ से डाउनलोड किया गया है।
आज के लिए इतना बहुत है फिर जल्दी ही नयी कॉमिक्स के साथ दुबारा मिलते है। .......

Rakesh ChitraKatha-Natku Jhatku ki Antriksh Yatra


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Chandamama Classics Aur Comics-01-08-Walt Disney ki Vichitrapuri


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Secret Invasion 034 New Avengers 42


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Secret Invasion 031 Fantastic Four 2


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Secret Invasion 028 Captain Britain MI13 2

Secret Invasion 022 Incredible Hercules 117

Secret Invasion 016 Ms Marvel 26

Sunday, February 9, 2014

Tulsi Comics-Taushi aur Tripple T


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तुलसी कॉमिक्स -तौसी और ट्रिपल टी
तुलसी कॉमिक्स श्री वेद प्रकाश शर्मा जी का है। तुलसी कॉमिक्स के तीन सबसे बड़े नायक "जम्बू", "तौसी", और "अंगारा" थे। और इन तीनो चरित्रों को बनाने वाले भी अपने आप में बहुत अच्छे उपन्यासकार थे और पुरे देश में इनके लिखे उपन्यास आज भी लोग पढ़ते है। जम्बू को खुद श्री वेद प्रकाश शर्मा जी ने खुद लिखा,तौसी को ऋतुराज जी ने लिखा जो कि सामाजिक उपन्यास लिखते थे,और अंगारा को श्री परशुराम शर्मा जी ने लिखा जिन्होंने राज कॉमिक्स के लिए नागराज,विनाश्दूत और भेड़िया लिखा। और नूतन कॉमिक्स के लिए मेघदूत लिखा। और अगर इनके चित्रकारों कि बात करूँ तो जम्बू को भरत मकवाना जी तौसी को कदम जी ने और अंगारा को प्रदीप शाठे जी ने बनाया। इस तरह से अगर देखा जाये तो इन कॉमिक्स को सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए था पर शायद उस समय ये कॉमिक्स छपने में जयदा और कॉमिक्स कि गुड़वक्ता में कम ध्यान दीया। फिर भी ये कॉमिक्स जरुर पढ़ने लायक है। अच्छी कहानी और बेहतरीन चित्रों वाली ये कॉमिक्स आप को जरुर पढ़ने चाहिए।
 जैसा कि आप सभी जानते है कि हिंदी कॉमिक्स का बहुत बड़ा प्रेमी हूँ ,कॉमिक्स के प्रति जो मेरा पागलपन है वो तो मेरे घर वाले ही कायदे से समझते है या कहूं झेलते है पर मैं सुधरने को तैयार नहीं हूँ। मेरा ये कॉमिक्स प्रेम अभूतपूर्व है और मैं बहुत दिनों तक ये सोचता था कि मुझसे बड़ा कॉमिक्स प्रेमी कोई हो ही नहीं सकता है पर समय समय पर मुझे कुछ ऐसे लोगो मिलते रहे जो मुझे आईना दिखाते रहे पहले तो मेरा सबसे बड़ा कॉमिक्स कलेक्टर होने का भ्रम टूटा और अब मेरा कॉमिक्स के प्रति सबसे बड़ा पागलपन रखने का भ्रम टूट गया। अब तो मुझे यकीन हो गया है कि मै तो इन सब लोगो से बहुत छोटा हूँ ये सब तो मुझसे बहुत आगे है।
 इस कॉमिक्स कि प्रति वो दीवानगी मुझे देखने को मिली जिसके बारे में मैं सोच भी नहीं सकता था। संजय जी मेरे इसी ब्लॉग से कॉमिक्स डाउनलोड करते है और दिल्ली में वकालत करते है उनसे मेरी एक दो बार बात हो चुकी थी। अभी कुछ दिन पहली उनका फोन आया वो चाहते थे कि मै ये प्रस्तुत कॉमिक्स जल्दी से अपलोड कर दूँ पर मेरी अपनी कुछ मज़बूरियाँ रहती है इसलिए ये काम जल्दी होना सम्भव नहीं लग रहा था। उनसे मेरी बात हुवी वो सिर्फ एक कॉमिक्स के लिए दिल्ली से लखनऊ आ गए जब कि उन्हें मैंने बता दिया था कि इस कॉमिक्स में चार पन्ने फट्टे है। अब मै एक कॉमिक्स के लिए १० किलोमीटर भी नहीं जा सकता और संजय जी पुरे ५०० किलोमीटर चले आये। अब आप ही जरा सोचिये कि किसका कॉमिक्स प्रेम ज्यादा बड़ा है मेरा या संजय जी का, मेरे अनुसार संजय जी का।
फिलहाल एक और संजय,यानि संजय सिंह  जी कि मदद से ये कॉमिक्स बिना किसी मिस्सिंग पेज के साथ अपलोड करने में सफल हो पाया हूँ जिसके लिए उन्हें तहेदिल से धन्यबाद। 
 आज के लिए इतना ही फिर जल्दी ही किसी और कॉमिक्स के साथ जल्द ही आप सब से मिलता हूँ।

Wednesday, February 5, 2014

Prabhat Comics-412-Sankar Aur Akhari Vashiyat


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प्रभात कॉमिक्स -४१२-शंकर और आखरी वसीयत
 कहानी के हिसाब से मुझे प्रभात कॉमिक्स से न ही कोई शिकायत रही है और न ही बहुत ज्यादा उम्मीद। कहानियां अपने समय के हिसाब से हमेशा औसत से बेहतर रही है , ये कहानी भी कुछ उसी तरह कि है पर अगर मुझे कोई शिकायत इनसे रही है तो वो है इनके चित्रो से जो कि कभी भी मुझे पसंद नहीं आये।
 कहानी शुरू का मुख्य नायक है शंकर जो मामूली काम करके अपना गुज़ारा चलता है एक बार उसे शहर के नामी शेठ को एक दुर्घटना से बचाता है। जो कि सम्भवता साज़िश जान पड़ती है, शेठ अपनी मौत के डर से शंकर को नौकरी पर रख लेता है और फिर शुरू होता है शकर का सही काम यानि शेठ कि हर सम्भव मदद करना पर क्या वो इसमें सफल हो पता है या नहीं ये ही इस कहानी का मूल आधार है। ये कहानी ७० के दशक कि हिंदी फिल्मो के तरह चलती है पर मज़ा बहुत आता है। पढ़ कर देखे आज के समय के हिसाब से ये कहानी पुरानी तो लगती है पर पसंद तो आप को जरुर आएगी।
 जैसा कि आप सब जानते ही है कि मै एक अध्यापक हूँ। और अभी हमारे स्कूल के १२ वीं के छात्रों का विदाई समारोह था। वैसे तो सभी कुछ वैसा ही हुवा जैसा कि हम सब इससे उम्मीद करते है। ११ वीं के छात्रो से जिस तरह से सारा समारोह तैयार किया था वो काबिलेतारीफ है।
 पर यहाँ जो एक बात उठ कर आयी वो थी 'आरक्षण'. अब जब ये बात निकली है तो इस पर मैं अपने विचार लिखूंगा और सभी से ये अनुरोध करूँगा कि या तो आप इस विचार को पूरा पढ़े या बिलकुल न पढ़े क्योंकि आधा विचार पढ़कर आप कोई भी निष्कर्ष निकाल सकते है। पूरा पढ़कर ही अपने विचार रखेंगे तो ही आप मेरी बातो का सही आकलन कर पाएंगे।
 'आरक्षण' कि पुरानी पृष्टभूमि में जाएँ तो सभी कि ये ही सोच थी कि जो तबका सदियों से दबाया गया है उसकी मदद की जाये जिससे वो तबका भी मुख्य धारा में आ सके और देश कि उन्नति में उसकी भी पूरी भागीदारी हो। विचार तो बहुत ही उत्तम था पर तरीका तो अपनाया गया वो बेहद ही बेहूदा और बचकाना था, और आज भी बादस्तूर जारी है। आप ने आरक्षण के माध्यम से उस तबके को और भी कमज़ोर बनाया और उसे सम्पन तबके के नज़रों में पहले से भी ज्यादा गिरा दिया। सिर्फ इतना ही नहीं किया बल्कि देश कि तरक्की को बाधित किया, जो लायक था उसे तो आप ने कुछ नहीं दिया पर जो लायक नहीं था उस काम के लिए चुन लिया जो वो करने में असमर्थ था। आज अगर कोई ९० % वाला उच्च वर्ग का बच्चा सवाल पूछता है कि कोई ४० % वाला उसका काम कैसे कर सकता है तो हमारे पास कोई जबाब नहीं होता है। और जब उसे समझने के लिए बतावो कि क्योंकि तुम्हारे पूर्वजों ने उनके पूर्वजो का शोषण किया था इसलिए ऐसा किया जा रहा है तो वो पूछ बैठता है कि मेरे पूर्वजों के किये गए काम के लिए हमें सजा कैसे दी जा सकती है और अगर ऐसा होता है तो फिर वो तो बदला हो गया। और किसी के पूर्वजो का बदला उनके बच्चो से लेना कौन सा न्याय है। और इसका मेरे पास कोई जबाब नहीं है। पर जितना बड़ा सच ये है उससे कही बड़ा सच ये भी है कि पिछड़ा तबका जिस स्थिति में तब था और आज भी है उसे ऐसे तो नहीं छोड़ा जा सकता उससे तो वो कही के नहीं रहेंगे। इस परिस्थिति में उच्च वर्ग फिर भी अपने आप को सम्भाले हुवे है पर ये तबका तो बिना किसी मदद के बिखर जायेगा। फिर किया क्या जाये क्योंकि दोनों बाते अपनी जगह पूरी तरह से सही है और हम किसी भी कारण और किसी भी कीमत पर किसी भी असमर्थ आदमी को कोई पद नहीं दे सकते ऐसे तो समाज में और बिखराव आएगा और आया भी है
 मेरा अपना विचार है कि हमें आरक्षण को पूरी तरह से ख़तम कर देना चाहिए, पर जो दबा तबका है उसके लिए हमें दूसरी मदद करनी चाहिए, हमें उनके बच्चो को मुफ्त भोजन,फीस , किताबे और उनके घर वालों को भी पैसे देकर प्रोत्सहित करना चाहिए जिससे वो अपने बच्चो को स्कूल भेजे। अध्यापको के लिए भी कुछ ऐसी योजनाये बनाये जिससे यदि कोयी अपने स्कूल से इस तबके के बच्चे को इस लायक बनता है कि वो स्कूल या कॉलेज में उच्च स्थान प्राप्त करे तो उसे भी कुछ धन प्रदान किया जाये। हमारी कोशिश इस तबके को समर्थ बनाने की होनी चाहिए जिससे वो खुद सभी के मुकाबले खड़ा होकर कोई पद प्राप्त करे। न कि किसी समर्थ के हक़ को मार कर असमर्थ को दे देना। इससे न किसी तबके का भला होगा और न ही देश का। इससे समाज में एकता आएगी और कोई हीन भावना से भी ग्रषित नहीं होगा।