Tuesday, February 3, 2015

Indrajaal Comics-26-29-Nakaam Shadyantra


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इंद्रजाल कॉमिक्स-२६-२९-नाकाम षड्यन्त्र
 जैसा की मै कई बार लिख चूका हूँ कि मुझे इंद्रजाल कॉमिक्स पसंद नहीं आती। मुझे कोई भी नायक की कहानी में भारतीयता का आभाव नज़र आता है। पर ये प्रकाशन हिंदी कॉमिक्स का पहला प्रकाशन था तो इसे भी जितना संभव हो स्कैन करके अपलोड करना जरुरी है। पर इस कॉमिक्स को स्कैन करने की मुख्य वजह इन पर दीमक लग जाना है। अब इन पर दवा लगा कर ठीक तो कर लिया है और साथ में अपलोड करके दोहरा बचाव करने की कोशिश की है।
 काफी दिनों बाद मैंने स्कैन और अपलोड करना शुरू किया है तो ऐसा लगता है जैसे लिखने की आदत खत्म हो गयी है। पर आज पूरी तरह से मन बना लिया है की कुछ तो लिखूंगा और जरा लम्बा लिखूंगा। और कुछ लिखने के लिए अपनी जिंदगी के कुछ पहलुंओ के बारे में लिखने से ज्यादा आसान कुछ हो ही नहीं सकता।
आज मै अपनी जिंदगी के उन रिश्तों के बारे में लिखूंगा जिसे मैंने कभी भी किसी को बताने की कोशिश नहीं की। कुछ रिश्ते अजीब ही होते है जो की अनजाने में आप की जिंदगी में आते है और जब तक आप उनके बारे में दिमाग से सोचने की स्थिति में पहुँचते है दिल दिमाग पर हावी हो चूका होता है और हम अक्ल से पैदल हो चुके होते है। आप लोगो को लग रहा होगा की मै अपने पहले प्यार के बारे में लिखने जा रहा हूँ। जी नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। प्यार तो मुझे कभी हुवा ही नहीं और मेरे बारे में यही शास्वत सत्य है। मै हमेशा से ही कुछ अजीब तरीके से रहा। मै अपने घर में सबसे बड़ा लड़का था और मेरे दो साल तक होते-होते मेरा छोटा भाई भी दुनिया में आ गया। मै शरीररिक रूप से बहुत कमजोर था और साफ़-साफ भी बोल लेता था। इसके उलट मेरा छोटा भाई मुझ से तगड़ा भी था और थोड़ा तुतलाता था जिससे सभी का प्यार उस पर ही बरसता था और मेरी तरफ किसी का ध्यान कम ही जाता था। जिसके कारण मै समय से बहुत पहले बड़ा हो गया। हर कोई मुझ से सिर्फ समझदारी की ही उम्मीद करता था,गलती करने का हक़ मेरे पास था ही नहीं। इस कारण मै थोड़ा ( या बहुत ज्यादा) अहंकारी और अन्तर्मुखी हो गया। जब तक पढ़ाई की मुझे किसी की जरुरत महसूस ही नहीं हुवी पर जब मै कमाने के लिए घर से बाहर निकला तो मै अपने जैसे लोगो तो तलाशने लगा। वैसे जितने भी लोग मिले अगर वो लड़के थे तो जिंदगी खूब चली पर ऐसी लड़कियां मिली तो भी रिश्तों की समस्या आ गयी। मेरा मन जो की हर उस की मदद करने को तैयार था जिसे कोई भी परेशानी हो , चाहे छोटी चाहे बड़ी फिर रिश्ते कोई बात ही नहीं थी किसी ने भाई बनाया किसी ने अपनी सुबिधा अनुसार कुछ और। हाँ किसी ने मुझे आज तक अपना प्यार नहीं बनाया। पर सच कहूँ तो अच्छा ही हुआ। और फिर दिन रात उनकी समस्या के बारे में सोचना और उन्हें कैसे समाप्त किया जाय बस इसी में जिंदगी चलने लगी। ये कुछ दिनों की बात नहीं थी ये तो दशो साल चला। क्या-क्या नहीं किया, सारे मंदिर घूमे, सारे ब्रत रखे। कितनी बार तो पूरी रात इस चिंता में बिता दिया की वो बेचारी कैसी होगी इतनी भारी समस्या का सामना कैसे कर रही होगी। लेकिन एक बात तो है की अगर आप का इरादा सही है तो भगवान आप का बुरा कभी नहीं होने देता। धीरे-धीरे करके सभी रिश्तों की सच्चाई सामने आने लगी हर कोई अपने मतलब के हिसाब से मुझे इस्तेमाल करता रहा। यहाँ ये बात स्पष्ट कर दूँ की सिर्फ लड़कियों ने ही मेरा इस्तेमाल नहीं किया लड़कों ने भी किया पर उन से निपटना आसान था जब मिल जाएँ सुना दो या दो लगा भी दो पर लड़कियों के साथ आप कुछ नहीं कर सकते। पर इन रिश्तों ने मुझे दो बहुत बड़ी चीज़े दीं - पहला भगवान पर पर अटूट विश्वास जगाया और दूसरा सभी पर अविस्वास करना सिखाया। मै आज भी अपने सारे रिश्ते वैसे ही निभाता हूँ जैसे पहले निभाता था सामने वाला ये कभी जान सकता की मै उस पर विस्वास नहीं करता पर मै बिलकुल नहीं करता। मुझे आब कोई बात शायद ही कभी हैरान करें। मेरा दिल अब इतना मज़बूत हो गया है की अब कोई भी रिश्ता टूट जाये मै २४ से ४८ घंटों में अपने आप सम्भाल लूंगा। पर इसका असर मै किसी और पर कभी नहीं पड़ने देता,मै हर एक पर तब तक विस्वास (करने का दिखावा) करता रहता हूँ जब तक वो दोखा नहीं दे देता और हर बार इस उम्मीद से देखता हूँ की शायद ये आदमी मुझे गलत साबित कर के मेरा विस्वास दुबारा जग दे पर आज तक तो कोई ऐसा नहीं मिला और आगे ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं है। कई बार तो मुझे विस्वास करते समय यहाँ तक पता होता है की ये आदमी कहाँ पर कैसे दोखा देगा और ८०% मेरा अंदाज़ा बिलकुल सही होता है। आज वैसे तो कुछ ज्यादा ही हो गया बस मै उन सभी से माफ़ी मांगता हूँ जिनको मेरी इस बात से ठेस पहुँची है और जिनका विस्वास किन्ही कारणो बस मेरे कारण टूटा है। फिर मिलते है जल्द ही। …………………

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