Sunday, November 6, 2016

Indrajaal Comics-106-HeronBhara Kutta



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इंद्रजाल कॉमिक्स-१०६-हीरों भरा कुत्ता
 जैसा की मैं पहले भी लिख चूका हूँ कि इंद्रजाल कॉमिक्स मुझे कभी भी लुभा नहीं पाई इसी कारण कभी इसका कलेक्शन करने का मन भी नहीं हुआ। इसलिए इसकी बहुत कॉमिक्स मेरे पास होने का तो सवाल ही नहीं उठता है। अब अगर कलेक्शन करने का मन भी करे तो संभव नहीं है। इसकी कीमत के कारण। ये कॉमिक्स मेरे एक जानने वाले दूकानदार ने बेचने के लिए मुझे दिया था तो बेचने से पहले मैंने इसे स्कैन कर लिया। वैसे तो ये कॉमिक्स पहले से कही अपलोडेड है। फिर भी मैं इसे अपलोड कर रहा हूँ।
आप ने एक बात जरूर नोट की होगी की आगस्ट से अक्टूबर तक काफी कॉमिक्स अपलोड की है। कारण सीधा सा था इन बीच मैं फिर से बेरोज़गार हो गया था। अब तो ऐसा लगता है कि जैसे की सारा जहान लुटेरों और बेईमानो से भरा हुआ है। हर किसी को अपने फायदे के अलावा कुछ भी नज़र नहीं आता। लोग अपने एक रूपये के फायदे के लिए आप का हज़ार का नुकशान करने को हमेशा तैयार रहते है। एक साल में अपने साथ दो बार एक जैसे आचरण के कारण मैं अभी तक सदमे में हूँ। समझ में नहीं आ रहा है की मेरे आचरण में परेशानी है या फिर ये दुनिया रहने लायक नहीं है। जो भी हो मुझे अब इस उम्र में अपने आप को बदलना सम्भव नहीं लगता है। और दुनिया को मैं बदल नहीं सकता। देखते है जिंदगी आगे कैसे चलती है।
 जैसा की आप सब को पहले से ही पता है की पिछली साल अक्टूबर २०१५ को मेरे स्कूल सेंट अंटोनी इंटर कॉलेज से जाना पड़ा था। जिसके कारण मुझे कही तो नौकरी करनी ही थी। पर बीच सेक्शन में नौकरी मिलना असंभव ही था। पर मैंने जिस तरह से उन दिनों नौकरी ढूंढी वो भी कमाल ही था। हर रोज़ काम से काम ५ स्कूल में सी.वी ड्राप करना मेरा हर वर्किंग दिन का काम था। कई स्कूल ऐसे थे जहाँ सिलेक्शन होने के बाद भी फर्स्ट चॉइस न होने के कारण हो नहीं रहा था। न्यूज़ पेपर की नौकरियों को तो मैंने ऐसे भरा था की मुझे ये भी याद नहीं रहता था की कहाँ -कहाँ मेल किया है और कहाँ नहीं। फिर एक दिन रात को लगभग ९:२० पर मिस्टर अरुण सिंह का फ़ोन आया उन्होंने मुझे अपने स्कूल अरुणोदय पब्लिक स्कूल जो की बाराबंकी में है उसके लिए ऑफर किया। फ़ोन पर ही पूरा इंटरव्यू ले लिया। मेरी नॉलेज से वो काफी प्रभावित थे। स्कूल मेरे घर से ४० किलोमीटर दूर था तो मेरा ज्वाइन करने का मन नहीं था। मुझे सिर्फ एक बार मिलने के लिए राज़ी किया गया। वहां जाने पर मुझे किसी भी तरह ज्वाइन करवाने की तैयारी की गयी थी। कम से कम जितनी सैलरी मुझे चाहिए थी उतने के लिए हाँ कर दिया। मुझे और टीचर्स से ३० मिनट पहले छोड़ने को भी तैयार हो गए। मुझे नौकरी चाहिए भी थी तो मैंने ज्वाइन कर लिया। फिर उन्होंने मेरे से स्कूल अफ्फिलिएशन के लिए कुछ और ट्रैनेड टीचर्स को देने की रिक्वेस्ट की। तो मैंने उन्हें अपने साथ बी.एड किए तीन और अपनी वाइफ के डोकोमेँट दे दिए जिससे स्कूल को जल्दी से अफ्फिलिएशन मिल सके। मेरे मित्रों में से दो ने ही स्कूल ज्वाइन किया। बाकी दो अगर अफ्फिलिएशन के लिए टीम आती तो वो स्कूल में आ जाते।
 एक महीना अच्छे से चला पर जब सैलरी आयी तो पता चला १० % कटौती होती है जिससे कोई बीच में स्कूल छोड़ कर न जा सके। उन्ही बीच मेरा जय पुरिया स्कूल में हो गया। सैलरी दोनों जगह एक ही थी तो मैंने अरुण सिंह से बात की। अगर आप को मुझ से कोई प्रॉब्लम हो तो मुझे बता दें। मेरा जैपुरिया में हो गया है मैं वहां चला जाऊंगा। यहाँ तो मैं बिना कटौती के ही काम कर सकता हूँ। जैसा की मुझे उम्मीद थी उन्होंने मेरी सैलरी की कटौती वापस ले लिए और कुछ तो कटौती के नाम पर ३% ही कटौती रह गयी। मुझे भी लगा एक महीने से मैं यहाँ पर हूँ। जल्दी स्कूल बदलना भी ठीक नहीं है। तो मैंने वही रुकने का फैसला कर लिया। फिर स्कूल में मैनजमेंट में परिवर्तन सुरु हुए। प्रिसिपल बदली और अरुण सिंह ने अपने रिस्तेदार को स्कूल का एडमिन बना दिया। मिस्टर अरुण सिंह केमिकल इंजीनियर है दुबई में तो आल्टरनेट महीने ही स्कूल में रह पाते है। क्योंकि ये परिवर्तन सीधा मेरे से सम्बन्ध नहीं थे इसलिए मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ना था। पर ये परिवर्तन धीरे-धीरे असर दिखाने लगा। प्रिसिपल अनुपमा ने अपने अनट्रेंड टीचर्स को रखने के लिए पुराने टीचर्स को निकालना शुरू कर दिया। कोई भी तर्क दे कर। मेरे लिए ये कोई नहीं बात तो थी नहीं। चुप रहना ही ठीक लगा। जुलाई ३१ को माँ की तबियत ठीक न होने के कारण स्कूल नहीं जा पाया तो मेरे मोबाइल पर मेरा टर्मिनेशन लेटर आ गया की आप प्रिंसिपल से की गयी बात बच्चों से शेयर करते है। मज़ेदार बात तो ये थी की ३० को जब मैं प्रिंसिपल से मिला था उसके बाद मैं उस क्लास में गया ही नहीं था जिस का नाम उन्होंने लेटर में दिया था। क्योंकि उस क्लास में मेरा पीरियड ही नहीं था। फिलहाल मैंने इनकी भी शिकायत सी.बी.यस.सी को,लेबर कोर्ट में , सी यम को और भी कई जगह कर दी है। पर हमारे देश का घटिया कानून है इसमे शिकायत करता को ये साबित करना पड़ता है कि उसकी शिकतायत सही है। शोषण करने वाला हमेशा सही ही होता है। मेरे पास ५ महीने के बैंक रिकॉर्ड है जिसमे स्कूल के द्वारा दी गयी सैलरी है। बच्चो के वॉट्सआप के मैसेज है जो ये साबित करता है की मैं उनकी क्लास में नहीं गया था। और उन्हें मेरी क्लास में पढ़ना पसंद था। लेवर कोर्ट को कंप्लेन किये हुए २ महीने से ज्यादा हो चूका है वहां से कोई उत्तर नहीं है। बाकि सब भी मौन है।सी एम और पी यम की तरफ से सिर्फ कंसर्न डिपार्टमेंट को केस ट्रांफर करने की ही खबर है। एक्शन अभी तक कोई नहीं है। यहाँ तक जो मेरा पेंडिंग आमउंट स्कूल से आना था उसे देने के एक हफ्ते बाद मेरे अकाउंट से निकलवा लिया। वो भी स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया जैसे बैंक से। कंप्लेन का कोई सही उत्तर बैंक भी नहीं दे रहा है। ये समय मेरे लिए बहुत घटिया गुज़रा है। मेरा मन कही भी काम करने का नहीं था। पर एक शुभचिंतक के कारण एक बहुत अच्छे स्कूल में २४ सितम्बर को ज्वाइन किया है। पर अब कुछ अच्छा नहीं लगता है। जिन सब के लिए मैंने इतने दिन काम किया। न के बराबर लेट होना चाहे १० किलोमीटर दूर हो चाहे ४० किलोमीटर दूर। एब्सेंट तो होना ही नहीं होता है मुझे। क्लास से कभी शायद ही कंप्लेन हो।शायद ही क्लास का कोई बच्चा हो जिसे मुझसे पढ़ाई के मामले में फ़ायदा न पंहुचा हो। फिर भी बार-बार मेरे साथ ऐसा क्यों ? छोडूंगा तो नहीं मैं इनको भी। पर प्राइवेट नौकरी करने वालों से अच्छे ईद के बकरे होते है जो एक दिन ही दर्द झेलते है प्राइवेट नौकरी वाले तो रोज़ हलाल होते है।