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प्रभात कॉमिक्स-२०३-जादुई टोपी ये कॉमिक्स स्कैन तो बहुत पहले हो गयी थी पर एडिट होने में बहुत टाइम लग गया इसलिए इसे अभी पोस्ट कर रहा हूँ। कहानी तो अच्छी है। पढ़ने में मज़ा आएगा। जिनको राजा-रानी और जादू की कहानियॉ पढ़ने में मज़ा आता है।
आज मुझे अपने ग्रेजुएशन के दिनों की एक मज़ेदार बात याद आ रही है जिसे मै यहाँ शेयर कर रहा हूँ।
बात ग्रेजुएशन सेकंड ईयर की है। पिता जी एयर फाॅर्स में थे तो एयर फोर्स का भूत सवार था इसलिए जब N. C. C. लिया तो वो भी एयर फोर्स की।
NCC में भी तीनो विंग यानि एयर फोर्स , आर्मी, और नेवी होती है। लेकिन हमारी ट्रेनिंग आर्मी वाले ही ज्यादातर मौकों पर करवाते थे। क्योंकि हमारी संख्या कम थी इसलिए हमें आर्मी कैंप (NCC ) के साथ ही भेज देते थे। हमारे लिए कम से कम २ कैंप करना कंपल्सरी था। ऐसा ही एक कैंप लगा जिसमे हमें जाना था। हम एयर फाॅर्स के १२ केडिट थे। ये कैंप लखनऊ के गोसाईगंज के पास गजरिया फॉर्म पर लगा। जहाँ घोड़ों और गढ़वों के खूब दर्शन हो जाते थे। क्योंकि हम सब एयर फ़ोर्स कैडिट अच्छी अंरेजी बोल लेते थे इसलिए हम सब हमेशा ट्रेनर के टारगेट पर होते थे।
इस बार का कैंप बड़ा था और उसमे लड़किया भी आयी थी। अब ये संयोग समझे की हम सब को लड़कियों के पास वाले रूम्स के बहार रहने को दिया गया था ऊपर से ये भी कह दिया गया था की हम सब को उन सब का ख्याल रखना है। हालत बहुत बुरे हो जाते थे हर किसी को २ घंटे ड्यूटी देनी पड़ती थी। हम सब ने दो-दो का ग्रुप बना रखा था। हम सब बड़ी मुश्किल से २ से ३ घंटे ही सो पते थे। लेकिन एक बात की सब तारीफ करते थे की हम सब अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से थी करते थे। जब भी नाईट में चेकिंग हुयी हमारे ग्रुप का कोई न कोई बंदा जगता ही मिलता था। १५ दिन का कैंप था ७ दिन तो किसी तरह निकल गए। आठवे दिन सुबह ८ बजे के आस-पास एक लड़का आ कर मेरी तरह इशारा करते हुए कहता है "ये था सर इसे मैंने देखा था " मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था की वो किस बारे में बात कर रहा था। फिर उसके साथ आये आर्मी के ट्रेनर में से एक मुझसे पूछते है की मै उस लड़की (नाम याद नहीं आ रहा है ) से रात को मिले थे। हम सब हक्के-बक्के थे और मै बहुत डरा हुवा। मैंने कहा सर मैं तो उस लड़की तो क्या किसी लड़की से नहीं मिला। फिर उन सब ने मुझसे तो कुछ नहीं कहा पर मेरे सभी साथियों से एक-एक करके जानकारी ली। फिर हमें कैंप कमांडर के पास ले जाया गया (क्योंकि मै बहुत डरा हुवा था इसलिए जहाँ भी मुझे ले जाया जाता था मेरे सभी साथी भी जाते थे ) जब हम उनसे मिले तो उन्होंने बताया की हमें तुम सब पर पूरा भरोषा है तुम में से कोई भी नहीं हो सकता पर अभी तुम लोग शांत रहो एक दो दिन में सच का पता सब को चल जायेगा। तब कहीं जा कर मेरी जान में जान आयी। फिर मैंने अपने दोस्तों से कहा की कम से कम उस लड़की को तो देख लेना चाहीये जिसके कारण मेरे ऊपर ये सब हो रहा है। (लेकिन आज तक मै ये नहीं जान पाया की वो लड़की कौन थी और कैसी दिखती थी। ) फिर अगले ही दिन सच का पता सब को चल गया जिस लड़के ने मुझे पहचाना था वो राइफल उठाये सजा झेल रहा था। जो कहानी बाद में पता चली वो ये था की उस लड़की का उस लड़के के साथ अफैर था और हम सब की ड्यूटी के कारण वो मिल नहीं पा रहे थे इसलिए उसने मेरा नाम लिया जिससे हम नाराज़ होकर ड्यूटी न करे और उनका मिलना आसान हो जाये। लेकिन जब आर्मी वालों को हम पर भरोषा था तो वही झूट बोलता हो सकता था। और सख्ती से पूछने पर शायद लड़की टूट गयी थी। क्योंकि हम इस बारे में बिलकुल बात नहीं करना चाहते थे और दूसरे हम आर्मी वाले लड़कों पर ज्यादा भरोषा भी नहीं कर सकते थे। इसलिए भी हम सब अपने काम में लग गए।