ये बाल उपन्यास अलका पॉकेट बुक से प्रकाशित हुआ था और अगर सच कहूं तो ये मेरी जानकारी में इस पब्लिकेशन का पहला उपन्यास है न ही इसका कोई बाल उपन्यास देखा था और न ही कोई और उपन्यास। पर इस को पढ़कर तो इतना जुरूर कहा जा सकता है कि कम से कम ६० बाल पॉकेट बुक्स तो जरूर छपी होंगी। ये लखनऊ से छपने वाला मेरे जानकारी में आया दूसरा पब्लिकेशन है। ज्यादातर पब्लिकेशन दिल्ली और मेरठ के ही हुआ करते थे पर लखनऊ से भी कुछ पब्लिकेशन थे ये जानकर अच्छा लगता है । वो समय भी इतना सुनहरा रहा होगा उपन्यास और कॉमिक्स के लिए कि हर कोई कॉमिक्स या फिर उपन्यास छापने को तैयार था और आज है कि जिनको उपन्यास और कॉमिक्स ने आदमी बना दिया वो भी इन्हे छोड़ चुके है और भी छोड़ने कि कगार पर है । कारण पाठकों की कमी ही है और उससे भी ज्यादा समय के साथ इन प्रकशकों का न बदलना था। पहले पैसे के लालच में अंधाधुंध विदेशी कॉमिक्स की कॉपी करना न अपनी कोई कहानी न ही अपना कोई चरित्र ज्यादातर तो सीधा विदेशी कॉमिक्स को लिख दिया। सब को कहना तो ठीक नहीं था फिर भी अगर देखा जाये तो जो सबसे ज्यादा ओरिजिनल लग सकते थे वो डायमंड कॉमिक्स के चरित्र थे खासकर प्राण के चरित्र "चाचा चौधरी", "बिल्लू", "पिंकी" आदि
मनोज कॉमिक्स में १९९२ तक जो भी छापा ज्यादातर ओरिजिनल ही था कुछ अपवाद है जैसे महाबली शेरा
(टार्जन ) कलाप्रेत (बैटमैन ) क्रूक्बोंड़ (टिनटिन) लेकिन इसके बाद भी इन सब चरित्रों की कहानी बिलकुल ओरिजिनल थी कहीं कुछ भी मिलता जुलता मुझे तो नहीं मिला फिर इन्होने जो राजा रानी की कहानियां लिखी वो बहुत ही शानदार थी कुछ चरित्र और भी थे जैसे राम रहीम , शेरबाज , शेरदिल, अँगूठेलाल, जो कम से कम विदेशी कॉमिक्स की कॉपी तो नहीं थे हाँ जोड़े के रूप में जासूस दिखाना पुराना जरूर है। लेकिन १९९२ के बाद तो उन्होंने भी विदेशी कॉमिक्स यहाँ तक विदेशी फिल्म तक पर कॉमिक्स लिख डाली लेकिन उससे पहले मनोज कॉमिक्स में सब कुछ ठीक ही था। कम से कम कहानी तो देशी होती थी। उसके बाद तो तूफ़ान (कप्तान अमेरिका) इन्द्र (रोबोकोप ) और भी बहुत कुछ साथ में कहानी में भी कॉपी होने लगी।
राज कॉमिक्स का शुरू से ही विदेशी प्रभाव था नागराज (स्पिडरमैन) शुरू की चार पांच कॉमिक में बस सांप और रस्सी का ही अंतर था जैसे मकड़ी काटने से स्पिडरमैन रस्सी इस्तेमाल कर रहा था वैसे ही नागराज सांप का जहर और सांप की खाल की राख के कारण सांप की रस्सी इस्तेमाल कर रहा थ। सुपर कमांडो ध्रुव (रोबिन ) परमाणु (एटम ) विनाशदूत (सुपरमैन ) भोकाल (ही मैन ) डोगा (पानिशर) पर कहानी देशी
अश्वराज का आईडिया ठीक था पर इच्छाधरी वाला कांसेप्ट बहुत सड़ा हुआ है । हर जगह दिख जाता है गोजो ओरिजिनल लगा मुझे फिर योद्धा
(थॉर ) पर कहानी अलग थी वही हाल नागराज में भी था और भोकाल में भी कि कहानी अपनी और चरित्र विदेशी पर यहाँ तक सब ठीक ही था। अब इसके बाद कहानी भी विदेशी उठायी जाने लगी और इंटरनेट और टीवी केबल के उदय ने सब कुछ सामने राख दिया। हीमैन और स्पिडरमैन ,सुपरमैन, बैटमैन कि कार्टून मूवीज हिंदी में आने लगी तो असली को देखने के बाद कॉपी कौन देखे और फिर राज कॉमिक्स के पास तो डोगा पर मूवी बनाने का अच्छा मौका था पर उन्होंने गवा दिया। अब सब बंद हो रहा है मेरा एक अंदाज़ा है राज कॉमिक्स दो साल से ज्यादा अब प्रिंटिंग नहीं कर पायेगी।
मनोज कॉमिक्स तो सिर्फ रिप्रिंट ही करेंगे जब तक उन्हें फ़ायदा होगा। तो मुझे लगता है कि कॉमिक्स तो दो साल में बिल्कुल ख़त्म और नावेल हिंदी में जिन्हे हम जानते है उनमे से वेद प्रकाश शर्मा जी अब नहीं रहे और सुरेंद्र मोहन पाठक जी भी कभी उम्र के हो गए है इन्ही दोनों के नावेल खूब पढ़े जाते थे तो अब पाठक जी जब तक है तब तक तो उनके नावेल कम से कम २०००० तो बिकेंगे ही बाकि अब ये कहानियों कि दुनियां ख़तम ही है।
अब इस बाल उपन्यास की बात करूँ तो कहानी बहुत बाँध कर रखती है और कभी भी आपको निराश नहीं करेगी।

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